उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले इस साल मार्च में गेंमचेंजर के रूप में मुख्यमंत्री बनाए गए तीरथ सिंह रावत का गेमओवर हो चुका है। तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद अब नए मुख्यमंत्री के चुनाव के लिए शाम 4 बजे विधायक दल की बैठक होने जा रही है। 114 दिन पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले तीरथ सिंह रावत को क्यों हटना पड़ा अब यह सवाल सियासी गलियारों में पूछा जाने लगा है। दरअसल तीरथ सिंह रावत ने अपने पहले 100 दिन के कार्यकाल में एक नहीं कई ऐसे सेल्फ गोल कर डाले थे जिससे कि उनका हटना तय हो गया था।
बतौर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह के काम और बयानों को लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी अपने को सहज नहीं महसूस कर रहा था। कोरोना की दूसरी लहर में फजीहत से केंद्रीय नेतृत्व तीरथ सिंह रावत से खुश नहीं था। कुंभ में कोरोना टेस्टिंग घोटोला सामने आने पर भाजपा सरकार की साख काफी गिर गई है। वहीं तीरथ सिंह के महिलाओं की फटी जींस वाले बयान ने भी पार्टी की खूब किरकिरी कराई थी। इसके साथ तीरथ सिंह ने भारत को अमेरिका का गुलाम बताने से उनकी समझ पर भी सवाल उठा दिए थे।
चुनावी मौसम में मुख्यमंत्री के ऐसे बयान पार्टी संगठन की मुश्किलें बढ़ा रहे थे। अपने 114 दिन के कार्यकाल में तीरथ सिंह रावत कोई ऐसा काम भी नहीं कर पाए कि पार्टी उन्हें विधानसभा चुनाव में चेहरा बना सके।
विधानसभा चुनाव क्या पार्टी खुद तीरथ सिंह रावत की उपचुनाव में जीत को लेकर सुनिश्चित नहीं थी। उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्दवानी विधानसभा सीटें मौजूदा विधायकों की मौत की वजह से खाली हैं। इन दोनों सीटों से तीरथ सिंह रावत को उपचुनाव लड़ाने में भी पार्टी को बड़ा खतरा दिखाई दे रहा था। तीरथ सिंह रावत के गंगोत्री सीट से चुनाव लड़ने पर भी भाजपा को खतरे की घंटी दिखाई दी। क्योंकि देवस्थानम बोर्ड को लेकर वहां तीर्थ पुरोहित नाराज चल रहे हैं। ऐसे में भाजपा को रिपोर्ट मिली कि गंगोत्री सीट से चुनाव लड़ने में तीरथ को दिक्कत आ सकती है।
वहीं हल्द्वानी सीट नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश की मृत्यु के बाद खाली हुई है। यदि यहां से तीरथ लड़ते हैं तो वहां कांग्रेस प्रत्याशी को सिमपैथी वोट मिलने की ज्यादा संभावना रहती है। ऐसे में पार्टी चुनाव में जाने का रिस्क नहीं उठाना चाहती थी।
वहीं तीरथ सिंह रावत के चुनाव लड़ने में एक संवैधानिक संकट भी था। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होगा। इसका मतलब है कि विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में 9 महीने ही बचे हैं।जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक साल बाकी है। लोकसभा सदस्य तीरथ सिंह रावत ने दस मार्च को सीएम पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के छह माह के भीतर विधायक बनना जरूरी था और 9 सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर तीरथ सिंह रावत के बने रहने संभव नहीं था।चुनाव आयोग पहले ही कोविडकाल की वजह से कई उपचुनाव कराने से मना कर चुका था। तीरथ सिंह रावत ने अपने इस्तीफा देने का कारण भी यहीं बताया।
तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद अब उत्तराखंड की पहचान राजनीतिक अस्थिरता वाले प्रदेश के रूप में भी होने लगी है। उत्तराखंड ने अपने 20 साल के इतिहास में 8 मुख्यमंत्री देखे। यहां चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा की। दोनों ही सरकारें नेतृत्व परिवर्तन कर चुकी हैं। इस मामले में भाजपा तो सबसे आगे है। मार्च माह में नेतृत्व परिवर्तन कर त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम के पद से हटना पड़ा। फिर तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली और अब उनको भी इस्तीफा देने पड़ा है। अकेले नारायण दत्त तिवारी ऐसे CM हैं, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। तिवारी 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।