नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने टू-फिंगर टेस्ट पर सख्ती से प्रतिबंध लागू करने का आदेश दिया है। साथ ही कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा है कि जो भी व्यक्ति बलात्कार की पुष्टि के लिए इस तरह के अवैज्ञानिक टेस्ट करेगा, उसे दुराचार (misconduct) का दोषी माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में ही इस प्रथा को संविधान की मर्यादाओं के विरुद्ध बताया था, लेकिन जब अदालत को पता चला कि अभी तक यह प्रक्रिया पूरी तरह से रुकी नहीं है तो कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए यह आदेश जारी किया।
विवादित प्रक्रिया : टू-फिंगर टेस्ट एक अवैज्ञानिक शारीरिक परीक्षण है, जिसमें बलात्कार पीड़ित महिलाओं के 'गुप्तांग' में दो उंगलियां डालकर उसकी मांसपेशियों की ढिलाई मापी जाती है और इस आधार पर उसके 'कौमार्य' निर्धारित करने का दावा किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की जांच करने वाले व्यक्तियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि उसे दुराचार का दोषी ठहराया जाएगा और मेडिकल कॉलेजों के स्टडी मटेरियल से भी टू-फिंगर टेस्ट को हटाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि 'बलात्कार पीड़िता की अवैज्ञानिक और आक्रमक तरीके की जांच उसके यौन आघात को फिर से चोट पहुंचाता है। एजेंसियां