DGFT News: विदेश व्यापार महानिदेशक (DGFT) संतोष कुमार सारंगी ने नई दिल्ली में कहा है कि भारत को भविष्य में यूरोपीय संघ (European Union) के कार्बन कर जैसी गैर-शुल्क और एकतरफा शुल्क संबंधी बाधाओं से निपटने के लिए खुद को तैयार करना होगा। सारंगी ने कहा कि अमेरिका तथा यूरोपीय संघ (EU) जैसे देश ऐसे उपायों के जरिए अपने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अमेरिका मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम और चिप अधिनियम के जरिए अपने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है, वहीं यूरोपीय संघ सीबीएएम (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र) के जरिए ऐसा करने की कोशिश कर रहा है। वनों की कटाई का विनियमन विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से आने वाले सामान पर गैर-शुल्क बाधाएं लगाने का एक और तरीका है।ALSO READ: केजरीवाल का संजीवनी प्लान, 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों का होगा मुफ्त इलाज
सारंगी ने कहा कि इसलिए गैर-शुल्क उपायों के साथ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की प्रतिबद्धताओं का स्पष्ट उल्लंघन करने वाले संभावित शुल्क एक ऐसा संयोजन है जिससे निपटने के लिए भारत को भविष्य में तैयार रहना होगा। विदेश व्यापार महानिदेशक ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता सम्मेलन में यह बात कही।
डोनाल्ड ट्रंप ने दी उच्च शुल्क लगाने की धमकी : अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उच्च शुल्क लगाने की धमकी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस पर स्थिति के अनुरूप काम करना होगा। डीजीएफटी ने कहा कि ट्रंप जो एक या 2 वाक्य कह रहे हैं, उसे समझना बेहद कठिन है। उन्होंने कहा कि लेकिन उन्होंने जो कहा, उससे मैंने यह समझा है कि उनका मुख्य आशय यह है कि भविष्य में पारिस्परिक उपाय मायने रखेंगे।
उन्होंने कहा कि ऐसे उपाय विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन होंगे, लेकिन पिछले ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर कुछ उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाया था। सारंगी ने कहा कि इसलिए हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां हमारे शुल्क अधिक हैं, लेकिन हम जरूरी नहीं, कि अमेरिका को निर्यात करें।ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट ने आतंकवाद के मामलों में 6 आरोपियों को दिया 2 सप्ताह का समय
कृषि क्षेत्र में भारत के शुल्क बहुत अधिक : उन्होंने कहा कि मिसाल के तौर पर कृषि क्षेत्र में भारत के शुल्क बहुत अधिक हैं, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि वह अमेरिकी बाजार में निर्यात करें। सारंगी ने कहा कि यदि अमेरिका उस पर शुल्क लगाता है, तो इससे हमें कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा, लेकिन कुछ वस्तुएं ऐसी होंगी जिन पर यह पारस्परिक शुल्क हमें प्रभावित कर सकता है।
उन्होंने कहा कि प्रभाव का अनुमान लगाने से पहले सभी पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। डीजीएफटी ने यह भी कहा कि भारत अब भी दुग्ध, कपड़ा और औषधि जैसे क्षेत्रों में पूंजीगत वस्तुओं का आयातक है, क्योंकि देश में प्रौद्योगिकी का अभाव है और इसके लिए उद्योग को अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। उन्होंने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय ई-कॉमर्स के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रहा है।
चीन का ई-कॉमर्स निर्यात सालाना करीब 300-350 अरब अमेरिकी डॉलर है, जबकि इस माध्यम से भारत का निर्यात सालाना केवल 5 से सात अरब डॉलर है। अनुमान है कि ऐसे निर्यात के लिए अमेरिका में करीब 1,500 चीनी गोदाम हैं। अनुमानों के अनुसार यदि अनुकूल परिवेश विकसित किया गया तो भारत का ई-कॉमर्स निर्यात 2030 तक 200-250 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है।
सारंगी ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि ई-कॉमर्स निर्यात को यथासंभव कम समय में मंजूरी मिल जाए। चीन में एक खेप को एक मिनट से भी कम समय में मंजूरी मिल जाती है। हमें इसी गति की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इन निर्यातकों के लिए वित्त तक पहुंच एक बड़ी चुनौती है और बैंक आमतौर पर उनको कर्ज देने से कतराते हैं।
वाणिज्य मंत्रालय ई-कॉमर्स निर्यातकों को समर्थन देने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने को वित्तीय साधन बनाने के लिए एक्जिम बैंक से बात कर रहा है। स्विट्जरलैंड की तरह उत्पादों की ब्रांडिंग तथा विपणन भी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।(भाषा)