Negligence in treatment: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि चिकित्सक को लापरवाही के लिए तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब उसके पास अपेक्षित योग्यता और कौशल न हो या इलाज के दौरान उचित विशेषज्ञता का इस्तेमाल न किया गया हो।
सर्जरी के बाद बिगड़ गई थी हालत : चिकित्सक पर प्रक्रिया में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया गया, जिससे सर्जरी के बाद लड़के की हालत बिगड़ गई। इसके बाद शिकायतकर्ता ने डॉ. सूद और पीजीआईएमईआर के खिलाफ चिकित्सकीय लापरवाही का आरोप लगाया, जिसे राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 2005 में खारिज कर दिया था। उपरोक्त निर्णय से व्यथित होकर, शिकायतकर्ताओं ने एनसीडीआरसी के समक्ष अपील दायर की।
एनसीडीआरसी ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले को खारिज कर दिया और चिकित्सक तथा अस्पताल को इलाज में लापरवाही के लिए तीन लाख रुपए तथा 50,000 रुपए का मुआवजा देने के लिए संयुक्त रूप से तथा अलग-अलग उत्तरदायी माना। डॉ. सूद तथा पीजीआईएमईआर ने एनसीडीआरसी के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए अपील दायर की।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सर्जरी या ऐसे उपचार के मामले में यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में मरीज की हालत में सुधार हो और सर्जरी मरीज की संतुष्टि के अनुसार सफल हो। यह बहुत संभव है कि कुछ दुर्लभ मामलों में इस तरह की जटिलताएं उत्पन्न हो जाएं, लेकिन इससे चिकित्सा विशेषज्ञ की ओर से कोई कार्रवाई योग्य लापरवाही साबित नहीं होती है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चूंकि शिकायतकर्ता डॉक्टर या पीजीआईएमईआर की ओर से किसी तरह की लापरवाही साबित करने में विफल रहे हैं, इसलिए वे किसी भी मुआवजे के हकदार नहीं हैं। (भाषा/वेबदुनिया)