जगद्गुरु ने कहा कि सेना प्रमुख का सम्मान करने में उन्हें बहुत गौरव की अनुभूति हुई। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अगर आगे कोई आतंकवादी वारदात को अंजाम देता है तो वह नेस्तनाबूद हो जाएगा। सेना प्रमुख का यह दौरा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ा रहा।
कौन है स्वामी रामभद्राचार्य : 14 जनवरी, 1950 को मकर संक्रांति के दिन उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में सरयूपारी ब्राह्मण परिवार में हुआ था हुआ था। उनके पिता का नाम शचि देवी और पिता का नाम राजदेव मिश्रा था। जगद्गुरु रामभद्राचार्य का असली नाम गिरिधर मिश्रा है। उनके इस नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। दरअसल उनके दादा की चचेरी बहन मीरा बाई की भक्त थीं, इसलिए उनका नाम गिरिधर रखा गया।
उनकी जीवनयात्रा की सबसे हृदयस्पर्शी और प्रेरणादायक बात यह है कि मात्र 2 महीने की उम्र में ही वे अपनी आंखों की रोशनी खो चुके थे। आंखों में रोशनी न होने के बावजूद, उन्होंने अपने भीतर ज्ञान का ऐसा प्रकाश प्रज्वलित किया, जिसने उन्हें असाधारण बना दिया।
उनकी स्मरण शक्ति इतनी अद्भुत थी कि पांच वर्ष की अल्पायु में उन्होंने संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता को कंठस्थ कर लिया था। सात वर्ष की उम्र तक आते-आते उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की संपूर्ण रामचरितमानस कंठस्थ हो चुकी थी। उनकी इस असाधारण स्मरण शक्ति की तुलना अक्सर स्वामी विवेकानंद से की जाती है, जिन्होंने अपनी अद्भुत बौद्धिक क्षमता से पूरे विश्व को चमत्कृत किया था।
स्वामी रामभद्राचार्य ने न केवल स्वयं ज्ञान अर्जित किया, बल्कि उसे समाज में प्रसारित करने का भी बीड़ा उठाया। उन्होंने चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना की और विकलांगों के लिए दुनिया का पहला विश्वविद्यालय, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, स्थापित किया। यह विश्वविद्यालय दिव्यांगजनों को शिक्षा और आत्मनिर्भरता के नए अवसर प्रदान कर रहा है, जो स्वामी जी की दूरदृष्टि और सामाजिक संवेदना का प्रमाण है।