नई दिल्ली। मोदी सरकार ने बुधवार को लोकसभा में पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल वापस ले लिया। यह बिल 11 दिसंबर 2019 को संसद में पेश किया गया था। जेपीसी द्वारा बिल में 81 संशोधन और 12 सिफारिशों के प्रस्ताव दिए जाने के बाद सरकार ने बिल वापस लेने और नया बिल लाने का फैसला किया गया।
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि बुधवार को लोकसभा में डेटा संरक्षण विधेयक, 2021 को वापस लिए जाने के बाद अब सरकार को उम्मीद है कि संसद के अगले बजट सत्र में नया विधेयक पारित हो सकेगा। सरकार ने बुधवार को लोकसभा में डेटा संरक्षण विधेयक, 2021 को वापस ले लिया था।
इस विधेयक को 11 दिसंबर, 2019 को सदन में पेश किया गया था। इसके बाद इसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेज दिया गया था। समिति की रिपोर्ट 16 दिसंबर, 2021 को लोकसभा में पेश की गई थी।
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार व्यापक विधेयक लाएगी जिसमें डिजिटल अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाएगा। उसमें डेटा निजता, उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए नियम तथा 'डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क' होगा।
मीडिया खबरों के अनुसार, विधेयक का नया संस्करण, आईटी कानून संशोधन, राष्ट्रीय डेटा शासन रूपरेखा आदि को संसद में रखा जाएगा और इसके जरिए डेटा निजता समेत आईटी क्षेत्र से संबंधित सभी मुद्दों का समाधान निकलेगा।
भारत के लिए क्यों जरूरी है बिल: राष्ट्रीय स्तर के साइबर एक्सपर्ट और ट्रेनर प्रो. गौरव रावल का कहना है कि डेटा प्रोटेक्शन बिल के आने के बाद देश की जांच व सुरक्षा एजेंसियां इन विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहेंगी और ये सभी कंपनियां सरकार व कानूनी एजेंसियों को जानकारी देने के लिए भारत में बाध्य होंगी।
2020 के लालकिला कांड का उल्लेख करते हुए प्रो. रावल कहते हैं कि उस समय विवेचना में खुलासा हुआ था कि 50 से ज्यादा ट्विटर एकाउंट घटना के कुछ ही समय पहले बने थे। इनमें 30 ऐसे ट्विटर हैंडल थे जो अमेरिका में जनरेट हुए थे। ट्विटर से जब इस संबंध में जानकारी मांगी गई तो शुरुआती तौर पर उसने असमर्थता जता दी।
दरअसल, सुरक्षा से जुड़े मामलों में विदेशी में स्थित सर्वरों से जानकारी के लिए संबंधित संस्था या सरकार से याचना करना पड़ती है, जबकि एशिया पैसेफिक सर्वर है तो 91 सीआरपीसी के तहत जानकारी मिल पाती है। दूसरी ओर भारत में सुरक्षा एजेंसियां आईटी एक्ट की धारा 69 ए के तहत किसी भी सर्वर या कंप्यूटर से जानकारी हासिल कर सकती है।
विदेशी कंपनियां भी भारत से जुड़े आईपी की जानकारी तो रिक्वेस्ट पर दे देती हैं, लेकिन यूरोप का आईपी होने की स्थिति में वे इसमें बिलकुल भी रुचि नहीं दिखाते। ऐसे में सुरक्षा से जुड़े मामलों में एजेंसियों को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। वे जानकारी के लिए MLAT (म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी) के माध्यम से आने की बात कहते हैं, जिसमें समय लगता है। छोटे-मोटे मामलों में तो जांच ही शुरू नहीं हो पाती।
भारत की इन एजेंसियों को निगरानी का अधिकार : भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2008 की धारा 69 ए के तहत केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 20 दिसंबर, 2018 को आदेश में 10 केंद्रीय एजेंसियों को 'किसी भी कंप्यूटर में उत्पन्न, प्रेषित (forward), प्राप्त (received) या संग्रहीत (stored) किसी भी जानकारी के अवरोधन (interception), निगरानी (monitoring) और डिक्रिप्शन (Decription) की शक्ति दी है। ये एजेंसियां- इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (RAW), कैबिनेट सचिवालय, सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय (केवल जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्व और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए), पुलिस आयुक्त, दिल्ली हैं।