असामान्य हरकतें, अज्ञात आवाजें सुनाई देने का भ्रम होना, नींद न आना आदि सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) के लक्षण हो सकते हैं। यह एक प्रकार का मनोरोग या विक्षिप्तता (Insanity) है, जो युवा वर्ग में ज्यादा देखने को मिलती है। कई बार नासमझी में परिजन इस तरह के लक्षणों को भूत-प्रेत का साया मानकर पीड़ित व्यक्ति की झाड़-फूंक भी करवा देते हैं। इससे समस्या और बढ़ जाती है।
क्या हैं लक्षण : वेबदुनिया से बातचीत करते हुए वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. रामगुलाम राजदान ने बताया कि सिजोफ्रेनिया के लक्षण सामान्यत: युवा वर्ग में ज्यादा नजर आते हैं। ऐसे व्यक्तियों का व्यवहार अजीब हो जाता है, किसी व्यक्ति को घूरता देखकर उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति उसे ही घूर रहा है, ऐसा व्यक्ति गुमसुम रहता है, खुद से बातें करना, नींद नहीं आना, निराशा, खाना सही तरीके से नहीं खाना, कामकाज छोड़कर अनावश्यक घूमना, अपने आप से बातें करना, अचानक हंसना या फिर रोने लगना, अज्ञात आवाज सुनाई देना (ऐसा लगता है मानो उनको कोई बाहर से बुला रहा हो) आदि ऐसे लक्षण हैं, जो यदि लगातार रहते हैं तो व्यक्ति इस बीमारी का शिकार हो सकता है।
उन्होंने बताया कि इस तरह के लक्षणों से रोगी की पहचान की जा सकती है। यदि इस तरह के लक्षण एक माह से अधिक रहते हैं तो व्यक्ति को सही उपचार की जरूरत है। वे कहते हैं कि निराशा और अवसाद में कई बार व्यक्ति आत्महत्या भी कर लेता है। दुनिया की 1 फीसदी आबादी सिजोफ्रेनिया का शिकार है। एक जानकारी के मुताबिक सिजोफ्रेनिया का इलाज न करवा पाने वाले करीब 90 फीसदी भारत जैसे विकासशील देशों में हैं।
कारण : डॉ. राजदान कहते हैं कि आमतौर पर यह बीमारी 15 से 25 साल के बीच ज्याद देखने को मिलती है, जब व्यक्ति अपने करियर की शुरुआत करना चाहता है या फिर कुछ नया करना चाहता है। जिन परिवारों में इस तरह की बीमारी पहले से है, उन्हें भी इस तरह की बीमारी की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। अर्थात यह एक आनुवंशिक रोग है। इसके कारण मस्तिष्क के कुछ हिस्से में डिसफंक्शन पैदा हो जाता है।
उपचार : डॉ. राजदान कहते हैं कि समय पर उपचार न किया जाए तो यह बीमारी बढ़ती जाती है और व्यक्ति परिवार पर बोझ बन जाता है। सही समय पर उपचार लेने से 70 प्रतिशत तक व्यक्ति पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, अन्य 30 प्रतिशत के ठीक होने की भी पूरी संभावना है।