वैश्विक मंदी के दौर में भारत चार पहिया वाहनों के लिए प्रमुख आकर्षक स्थल साबित हुआ है। 2009 के अंत तक देश के वाहन क्षेत्र की वृद्धि दर 60 प्रतिशत पर पहुँच गई थी। यही वजह है कि वैश्विक कार विनिर्माताओं की निगाहें भारतीय बाजार पर टिक गई हैं।
वैश्विक वित्तीय संकट और विकसित देशों में मंदी के कारण दुनिया में बहुत से लोग मानने लगे थे कि कारों की बिक्री प्रभावित होगी और नौकरियाँ घटेंगी तथा ऋण जोखिम बढ़ेगा। लेकिन साल बीतते-बीतते भारत ईंधन की खपत कम करने वाली छोटी कारों के बूते यात्री कार बाजार के प्रमुख गंतव्य के रूप में उभरकर सामने आया।
टाटा समूह की कंपनी टाटा मोटर्स ने दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो पेश कर दुनिया के सामने अपना लोहा मनवा लिया। टाटा ने ब्रिटेन के प्रतिष्ठित ब्रांडों जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण करने में भी सफलता हासिल की।
भविष्य काम्पैक्ट कारों का है, इस तथ्य को दुनिया की सभी प्रमुख कार कंपनियों ने माना है। यही वजह है कि फोर्ड, जनरल मोटर्स, टोयोटा और रेनो-निसान-बजाज ने भारतीय बाजार में छोटी कार उतारने की अपनी योजना की घोषणा की।
चूँकि अब दुनिया का रुख भी छोटी कारों की ओर है, इसलिए कार कंपनियाँ भारत को अपना निर्यात का आधार बनाने का मौका नहीं गँवाना चाहती है।
वैश्विक ऋण संकट की वजह से इस साल बिक्री के मोर्चे पर कोई बहुत बड़ा धमाका होने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद कार कंपनियाँ ठीक-ठाक प्रदर्शन करने में सफल रहीं। नवंबर माह में देश में कारों की बिक्री में 61 प्रतिशत का जोरदार इजाफा दर्ज हुआ। सभी कार कंपनियों ने कुल मिलाकर जनवरी से नवंबर की अवधि की दौरान 13,10,597 कारें बेचीं, जो पिछले साल की इसी अवधि के 11,19,640 इकाइयों के आँकड़े से 17. 06 फीसद अधिक है।
कार बाजार में कई नई कारें मसलन मारुति सुजूकी की रिट्ज, होंडा की जैज तथा फिएट की ग्रैंडे पुंटो पेश हुईं, जिसकी घरेलू बाजार में कारों की बिक्री का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। वैश्विक स्तर पर हुई कुछ घटनाओं का प्रभाव भारत पर भी नजर आया।
भारतीय बाजार काफी बेचैनी से अमेरिकी कार कंपनी जनरल मोटर्स को दिवालिया कंपनी बनते देखता रहा। इसके अलावा सभी की रुचि फाक्सवैगन की जापान की वाहन कंपनी मारुति सुजूकी में 19.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की योजना में भी थी। सब जानना चाहते थे कि इसके आगे क्या होगा। इसके साथ ही यूरोप की प्रमुख कार कंपनी द्वारा पोर्शे में 49. 9 फीसद हिस्सेदारी का अधिग्रहण भी चर्चा का विषय रहा।
जहाँ नैनो को बाजार में उतारा जाना बड़ी घटना रही, वहीं अमेरिका की कल्ट बाइक निर्माता हर्ले डेविडसन भी पीछे नहीं रही। हर्ले डेविडसन ने भारतीय अधिकारियों के साथ चली वर्षों की बातचीत के बाद भारत में उतारने का ऐलान किया।
वाहन बाजार में 2009 में जो अन्य घटनाएँ चर्चा का विषय रहीं उनमें मारुति सुजूकी के कारखाने से 80 लाखवीं कार बाहर आना, अगस्त में हीरो होंडा द्वारा पहली बार चार लाख इकाइयों के मासिक बिक्री आँकड़े को पार करना और दूसरी तिमाही में जेएलआर के आश्चर्यजनक प्रदर्शन के बूते टाटा मोटर्स का मुनाफे की स्थिति में पहुँचना शामिल हैं।
वाहन बाजार में कुछ ऐसा भी हुआ, जिसे बहुत अच्छा नहीं कहा जाएगा। साल के अंत में बजाज ऑटो ने घोषणा की कि वह अब स्कूटर बनाना बंद कर देगी। कंपनी का ‘हमारा बजाज’ देश के मध्यमवर्गीय वर्ग की पहचान बन चुका है, जो अब लुप्त हो जाएगा।
कीमतों की बात करें, तो 2009 में इस मामले में व्यापक रेंज देखने को मिली। नैनो की एक्स शोरूम कीमत जहाँ सिर्फ 1.25 लाख रुपए थी, वहीं पार्शे की सुपर प्रीमियम पानामेरा का दाम 2.05 करोड़ रुपए था। वहीं राल्स रायस ने 2. 5 करोड़ की घोस्ट भी पेश की। (भाषा)