स्वाधीनता के अमृत-महोत्सव में 'भारत काव्य पीयूष' पुस्तक की अवधारणा व उसे मूर्तरूप प्रदान करने में वैश्विक हिन्दी संस्थान, ह्यूस्टन, अमेरिका के अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश गुप्ता व उनकी प्रबुद्ध टीम के सद्प्रयासों से 8 देशों में बसे भारत के 115 मनस्वियों के हृदयतल में मातृभूमि के प्रति हिलोरें लेती सद्भावनाओं को काव्य-रूप में संपादित-संकलित व प्रकाशित करने का कार्य अत्यंत सराहनीय है।
इस संग्रह में 175 कविताओं का 11 विषयों में वर्गीकरण किया गया है- भारत का इतिहास, भारत की संस्कृति, भारत के महापुरुष, स्वतंत्रता संग्राम, भावी भारत, भारत की गरिमा, भारत की समाज व्यवस्था, प्रवासी भारतीय, मेरा भारत, भारत के आराध्य व भारतमाता।
देशप्रेमी कवियों की लेखनी से देश व मातृभूमि के प्राचीन व अर्वाचीन दोनों के महिमा गान में समर्पित व्यष्टि से समष्टि की ओर अग्रसर सर्वकालिक व प्रासंगिक अनेक कविताएं नि:सृत हुई हैं, जो पाठकगणों में विशेषकर युवा मन को भरपूर जोश व प्रेरणा से सराबोर करने में सक्षम होंगी।
इस काव्य-संकलन में कविता की अन्य प्रचलित विधाओं के साथ-साथ एक नवविकसित काव्य-विधा 'ओम आकृति' विधा भी प्रस्तुत की जा रही है। आरोह-अवरोह पर केंद्रित ये कविताएं धनुष, हीरे, षट्कोण, अष्टकोण आदि ज्यामितिक आकृतियों का निर्माण करती हैं।
इसमें प्रत्येक पंक्ति का स्वयं में अर्थपूर्ण होना आवश्यक है, साथ ही हर पंक्ति में एक वर्ण बढ़ता और नियत वर्ण-संख्या तक पहुंचकर प्रति पंक्ति एक वर्ण घटता चला जाता है। 'जितना चढ़ाव उतना उतार' इस विधा का मूल मंत्र है। इस नवीन विधा में रचित 11 कविताएं इस संकलन में प्रकाशित की गई हैं।
'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भारतीय अवधारणा भी तभी चरितार्थ होती परिलक्षित होती है, जब हम सब मन, कर्म व वचन से संपूर्ण धरा व इसके निवासियों को एक परिवार की तरह मानकर व्यवहार करते हैं। भारत काव्य पीयूष भी इस संस्थान की उक्त अवधारणा को ही पुष्ट करता हुआ प्रतीत होता है।