COVID-19 Lock Down पर कविता : चलो घर बैठ रिश्ते निभाते हैं

रेखा भाटिया
चलो घर बैठ रिश्ते निभाते हैं, 
 
ना तुम जल्दी ऑफ़िस जाना,
ना तुम देर से घर आना, 
घर से ही काम कर काम चलाना !
 
सुबह मैं देर तक सोती रहूं, 
चाय बना तुम करना सूरज का स्वागत,
चिड़ियों को दाना डाल पानी रखना, 
मुझे जगाने की प्यार से कोशिश करना !
 
घड़ी की सुइयां छेड़ेंगी हर सुबह,
लंबी रातों से उकता हर रोज़ सबेरे,
अलार्म बंद कर भूल जाना उठाना, 
सपनों की बतिया दोपहरी में सुनाना !
 
पुरानी तस्वीरों का खोल पिटारा,
यादों में उलझ करेंगे हिसाब, 
चलो गलतियों की मांगे माफ़ी,
आनेवाली यादें बनाएं खूबसूरत !
 
उल्टी गंगा बहाएं घर बना गढ़, 
आधे-आधे बांट लें अधिकार, 
आधे कर्तव्य निभाएं एकदूजे के, 
अर्द्धनारीश्वर बन पूरक दूजे के !
 
थोड़े तुम थोड़ा मैं बदलूंगी, 
बाहरी हवा खतरनाक है, 
भीतर की हवा प्राणवायु, 
जीतना है जंग शुद्ध रख इसे !
 
सुनो अब तक घर मैंने संभाला, 
अनिश्चित समय काल है अभी, 
घर में मेहमान नहीं साथी बनोगे,
पुरानी उलझनें फिर कभी सही !
 
चलो घर बैठे रिश्ते निभाते हैं, 
पुराने रिश्ते नए समझ अपनाएं, 
कोरोना के कहर से बचाकर, 
एक मौका मिला है सदुपयोग करें !
 
जोड़ ह्रदय से हृदय के रिश्ते,
हमारे रसायन को दें नई संज्ञा, 
जोड़ें रिश्ते प्रकृति से, अपनों से, 
भीतर प्रकाश से जो भूले हम !
 
कलयुग का कदापि अंत हो रहा, 
इस तरह सतयुग का करें शुभारंभ, 
सुधार कलयुगी गलतियां जो की थी,
रिश्तों से साकार भविष्य करें सृजन !
 

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