गुरु पूर्णिमा : गुरु कौन होता है?

आश्रमों में गुरु और शिष्य की प्राचीन भारत में परंपरा रही है। अब ना गुरु, गुरु जैसा है और ना शिष्य, शिष्य जैसा। बदल गए हैं आश्रम, तो फिर सब कुछ बदलेगा ही।

क्या स्कूल या कॉलेज का शिक्षक गुरु नहीं होता? भागवत कथा बांचने वाला या चार वेद या फिर चार किताब पढ़कर प्रवचन देने वाला गुरु नहीं होता? किताब, चूरण, ऑडियो-वीडियो कैसेट, माला या ध्यान बेचने की नौकरी देने वाला भी गुरु नहीं होता?

कुछ लोग कहते हैं कि शास्त्रों अनुसार और गुरु-शिष्य की परंपरा अनुसार पता चलता है कि गुरु वह होता है जो आपकी नींद तोड़ दे और आपको मोक्ष के मार्ग पर किसी भी तरह धकेल दे।

हालांकि कहा जा सकता है कि जो भी जिस भी प्रकार की शिक्षा दे वह सभी गुरु ही होते हैं। गुरु द्रोण ने धनुष विद्या की शिक्षा दी, तो क्या वे गुरु नहीं थे? क्या जो सिर्फ मोक्ष का मार्ग ही दिखाए वहीं गुरु होते हैं, जो डॉट नेट‍, डॉक्टरी या इंजीनियरिंग सिखाए वे गुरु नहीं होते?

श्री रजनीश कहते हैं गुरु की खोज बहुत मुश्किल होती है। गुरु भी शिष्य को खोजता रहता है। बहुत मौके ऐसे होते हैं कि गुरु हमारे आसपास ही होता है, लेकिन हम उसे ढूंढ़ते हैं किसी मठ में, आश्रम में, जंगल में या किसी भव्य प्रेस कांफ्रेंस में।

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अंधे भक्तों के अंधे गुरु :
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बहुत साधारण से लोग हमें गुरु नहीं लगते, क्योंकि वे तामझाम के साथ हमारे सामने प्रस्तुत नहीं होते हैं। वे ग्लैमर की दुनिया में नहीं है और वे तुम्हारे जैसे तर्कशील भी नहीं है। वे बहस करना तो कतई नहीं जानते।

तुम जब तक उसे तर्क या स्वार्थ की कसौटी पर कस नहीं लेते तब तक उसे गुरु बनाते भी नहीं। लेकिन अधिकांश ऐसे हैं जो अंधे भक्त हैं, तो स्वाभाविक ही है कि उनके गुरु भी अंधे ही होंगे। माना जा सकता है कि वर्तमान में तो अंधे गुरुओं की जमात है, जो ज्यादा से ज्यादा भक्त बटोरने में लगी है।

जैन धर्म में कहा गया है कि साधु होना सिद्धों या अरिहंतों की पहली सीढ़ी है। अभी आप साधु ही नहीं हैं और गुरु बनकर दीक्षा देने लगे तो फिर सोचो ये कैसे गुरु। कबीर के एक दोहे की पंक्ति है- 'गुरु बिन ज्ञान ना होए मोरे साधु बाबा।' उक्त पंक्ति से ज्ञात होता है कि कबीर साहब कह रहे हैं किसी साधु से कि गुरु बिन ज्ञान नहीं होता

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