Chitragupta Diwas 27 अप्रैल को क्यों मनाया जा रहा है?
27 अप्रैल को कायस्थ समाज द्वारा भगवान चित्रगुप्त की जयंती या प्रकट्योत्सव पर्व (Lord Chitragupta) मनाई जा रहा है। भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ समाज का वंशज माना जाता है। ब्रह्मा जी की काया से चित्रगुप्त जी उत्पन्न हुए, इसलिए उनके वंशज कायस्थ कहलाते हैं।
कायस्थ समाज के लोग 27 अप्रैल को अपने आराध्यदेव भगवान चित्रगुप्त का प्रकट्योत्सव दिवस मना रहे हैं और इसी दिन गंगा सप्तमी पर्व भी मनाया जा रहा है। चित्रगुप्त जयंती के अवसर को उत्सव स्वरूप यानी चित्रगुप्त दिवस मनाया जा रहा है। आपको बता दें कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इसी दिन चित्रगुप्त प्रकटोत्सव/ चित्रगुप्त जयंती पर्व भी मनाया जाता है।
आज भगवान चित्रगुप्त की जयंती पर कायस्थ समुदाय के लोग भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र भगवान चित्रगुप्त का पूजन करके उनका जन्म उत्सव मना रहा हैं। चित्रगुप्त भगवान यमलोक में सभी प्राणियों के हर पल के कर्म का लेखा-जोखा रखने वाले देवता है। वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन चित्रगुप्त प्रकटोत्सव की कथा पढ़ी एवं सुनी जाती है। इस दिन कलम-दवात तथा चित्रगुप्त जी की पूजा करने से मनुष्य को बुद्धि, बल के साथ ही धन-वैभव की प्राप्ति भी होती है। इस दिन चित्रगुप्त जी के मंदिरों में सामूहिक रूप से विशेष श्रृंगार, पूजन-अर्चन एवं भंडारा किया जाता है।
आपको बता दें कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इसी दिन चित्रगुप्त प्रकटोत्सव/ चित्रगुप्त जयंती पर्व भी मनाया जाता है। चित्रगुप्त जयंती का त्योहार कायस्थ वर्ग में अधिक प्रचलित है, क्योंकि चित्रगुप्त जी को वह अपना ईष्ट देवता मानते हैं। दरअसल भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा के अंश से हुआ है। वह यमराज के सहयोगी हैं। जो जीव जगत में मौजूद सभी का लेखा-जोखा रखते हैं।
चित्रगुप्त के जन्म की कथा काफी रोचक है। जब यमराज ने अपने सहयोगी की मांग की, तो ब्रह्मा ध्यान में चले गए। उनकी एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ। इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था। इसलिए ये कायस्थ कहलाए और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भी भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। माना जाता है कि यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा याचना करने से मनुष्य को नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है।
पूजन विधि-
- सबसे पहले पूजा स्थान को साफ कर एक चौकी बनाएं।
- उस पर एक कपड़ा बिछा कर चित्रगुप्त का चित्र रखें।
- दीपक जला कर गणपति जी को चंदन, हल्दी, रोली अक्षत, दूब, पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
- फल, मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया विशेष पंचामृत (दूध, घी कुचला अदरक, गुड़ और गंगाजल) और पान सुपारी का भोग लगाएं।
- परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब, कलम, दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के सामने रखें।
- सभी सदस्य एक सफेद कागज पर चावल का आटा, हल्दी, घी, पानी व रोली से स्वस्तिक बनाएं।
- उसके नीचे पांच देवी देवताओं के नाम लिखें, जैसे- श्री गणेश जी सहाय नमः, श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः, श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि।
- इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें, इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें। अब अपने हस्ताक्षर करें। और इसे पवित्र नदी में विसर्जित करें।
आज के दिन निम्न मंत्र से भगवान चित्रगुप्त की प्रार्थना की जाती है।
मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्।
लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।
'ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः'
मंत्र की 108 मंत्र का जाप करना लाभदायी रहता है।
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