Baba Khatu Shyam : आज खाटू श्याम की जयंती मनाई जा रही है। प्रतिवर्ष देवउठनी/ देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन ही बाबा खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के वरदान के कारण ही आज कलियुग में भीम के पुत्र घटोत्कच और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को ही खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है। आइए जानते हैं यहां वीर बर्बरीक या खाटू श्याम की पौराणिक कहानी...
खाटू श्यामजी भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार हैं। आज खाटू में श्याम के रूप में जिनकी पूजा की जाती है, दरअसल वे भीम के पोते वीर बर्बरीक हैं। और श्री कृष्ण के वरदान स्वरूप ही उनकी पूजा श्याम रूप में की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की माता का नाम कामकटंककटा था, जिन्हें मोरवी के नाम से जाना जाता है। अत: अपनी माता के नाम के कारण उन्हें मोरवीनंदन भी कहा जाता है।
बर्बरीक वीर योद्धा थे और तीनों लोकों को जीतने की सामर्थ्य रखते थे। बर्बरीक ने अपनी मां से ही युद्ध कला सीखी थीं और भगवान शिव को अपनी कठोर तपस्या से प्रसन्न किया तथा 3 अमोघ बाण भी प्राप्त किए थे। इसी कारण उन्हें तीन बाणधारी के नाम से भी जाना जाता है। बर्बरीक से प्रसन्न होकर अग्नि देव ने धनुष प्रदान किया था।
जब कौरवों-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध तैयारियां जोरों पर थीं और चारों ओर इस युद्ध की चर्चाएं थीं तब यह समाचार जब बर्बरीक को मिला तो उनकी भी युद्ध में शामिल होने की इच्छा हुई। वे अपनी मां से युद्ध में शामिल होने की अनुमति लेने पहुंचे तथा अपनी मां से आशीर्वाद लेकर उन्हें यह वचन दिया कि वे हारे हुए पक्ष का ही साथ देंगे।
इसतरह वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष लेकर युद्धक्षेत्र कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर गए। तब मार्ग में उन्हें एक ब्राह्मण ने रोक कर परिचय पूछा, और उन पर व्यंग्य किया- क्या वह सिर्फ तीन बाण लेकर युद्ध में सम्मिलित होने आया है?
इस पर वीर बर्बरीक ने कहा कि शत्रु सेना को धराशायी करने के लिए मेरे तीन बाण ही काफी हैं। साथ ही बर्बरीक ने यह भी कहा कि यदि मैंने उन तीनों बाणों का प्रयोग कर लिया तो त्रिलोक में हा-हाकार मच जाएगा। जिस ब्राह्मण ने बर्बरीक ये प्रश्न किया था, वे कोई और नहीं स्वयं योगेश्वर कृष्ण स्वयं थे।
उन्होंने बर्बरीक से वचन लेकर दान में सिर मांग लिया। तब बर्बरीक कुछ क्षण के लिए हतप्रभ हो गए, और यह जान गए कि ये कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हैं। लेकिन वचन देने के कारण बर्बरीक ने प्रार्थना की कि आप अपने वास्तविक स्वरूप के दें, तब श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और बर्बरीक को उनकी इच्छानुसार अपने विराट रूप में दर्शन दिए।
और इस तरह खाटू में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की पूजा श्याम के रूप में की जाती है। इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के समय भगवान कृष्ण ने बर्बरीक को यह वरदान दिया था कि कलयुग में उनकी पूजा श्याम यानि कृष्णस्वरूप के नाम से होगी। आज भी खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है। राजस्थान के सीकर जिले में शहर से 43 किमी दूर खाटू गांव में खाटू श्याम मंदिर है, जो हिंदू धर्म का जाना-माना तीर्थ स्थल है।
आज देवउठनी एकादशी, तुलसी-शालिग्राम विवाह और बाबा खाटू श्याम के जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।
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