भगवान ऋषिकेश की पूजा होगी द्वादशी तिथि को, जानिए ऋषिकेश का क्या है अर्थ
सोमवार, 22 अगस्त 2022 (16:49 IST)
भगवान श्रीहरि विष्णु के एक स्वरूप को ऋषिकेश भी कहा जाता है। भाद्रपद की एकादशी और द्वादशी तिथि के दिन उनके इस स्वरूप की पूजा होगी है। खासकर भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के हृषीकेश रूप की पूजा की जाती है।
ऋषिकेश शब्द का अर्थ : ऋषिकेश का शब्दिक अर्थ यदि हम निकाले तो होता है ऋषियों के केशया ऋषियों जैसे केश या बाल। परंतु इसका यह अर्थ नहीं होता है। प्रारंभ में भगवान विष्णु को हरिकेश या हृषिकेश कहा जाता था। संबभवत: यही बाद में ऋषिकेश हो गया।
हृषीकाणामीन्द्रियाणामीशः हृषिकेशः
अर्थात् वे (हृषीक=) इन्द्रियों के भी ईश्वर हैं इसीलिए हृषीक+ईश=हृषीकेश हैं।
हृष्टा जगत् प्रीतकराः केशा रश्मयो ऽस्य हृषीकेशः।
गो का एक अर्थ इन्द्रियां भी होता है। जिसके पति या ईश्वर होने के कारण वे गोप हैं। उनके पूर्ण वश में इन्द्रियां हैं इसीलिए वे परमात्मा हैं। वे हर्षित होते हैं इसलिए भी हृषिकेश हैं। उनकी रश्मियों (सूर्य) से जगत् प्रीति करता है इसलिये भी वे हृषिकेश हैं।
गुडानिद्राआलस्यं इन्द्रियाणि वा तस्य ईशः अर्थात् जिसने निद्रा या आलस्य अथवा माया को जीत लिया वह गुडाकेश है। गीता में गुडाकेश अर्जुन को भी कहा गया है। वैसे यह नाम देवाधिदेव महादेव का भी है।
कैसे करें पूजा :
1. इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकार नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पहले तिल के पानी से स्नान करें।
2. फिर सफेद या पीले कपड़े पहनकर सोलह प्रकार की चीजों से भगवान विष्णु की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें।
3. पंचामृत के साथ ही शंख में दूध और जल मिलाकर भगवान का अभिषेक करें। ऐसा करने से महायज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है।
4. इसके बाद तुलसी पत्र चढ़ाकर केला या किसी भी मौसमी फलों का नैवेद्य लगाएं।
5. अंत में आरती उतारें और प्रसाद का वितरण करें।
6. शाम को भी प्रभु की पूजा और अरती करें और फिर दूसरे दिन व्रत का पारण करें या तिथि समाप्ति के बाद व्रत का पारण करें।
लाभ : इस दिन व्रत रखने से शारीरिक कष्ट दूर रोते हैं। जाने-अनजाने में हुए पाप कट जाते हैं। नदी में स्नान और तीर्थ में दान करना अश्वमेध यज्ञ के बराबर माना गया है।
ऋषिकेश : भारत में उत्तराखंड में स्थित ऋषिकेश नामक एक पावन और पवित्र नगरी है जहां ध्यान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। यह स्थान शिव, राम, कृष्ण और ऋषि राभ्या की कथा से जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि ऋषि राभ्या ने कठोर तपस्या किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ऋषिकेश के अवतार में प्रकट हुए थे। तब से इस स्थान को 'ऋषिकेश' नाम से जाना जाता है।