फाल्गुन द्वितीया (Phalguna Dooj) को मनाया जाने वाला फुलेरा (Phulera फुलैरा) दूज पर्व होली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। ब्रजभूमि के कृष्ण मंदिरों में इस त्योहार का बहुत अधिक महत्व हैं। पढ़ें कथा-
फुलैरा/फुलेरा दूज की पौराणिक कथा (Phulera Dooj Story) के अनुसार, व्यस्तता के कारण भगवान श्री कृष्ण कई दिनों से राधा जी से मिलने वृंदावन नहीं आ रहे थे। राधा के दुखी होने पर गोपियां भी श्री कृष्ण से रूठ गई थीं। राधा के उदास होने के कारण मथुरा के वन सूखने लगे और पुष्प मुरझा गए।
वनों की स्थिति के बारे में जब श्री कृष्ण को पता चला तो वह राधा से मिलने वृंदावन पहुंचे। श्रीकृष्ण के आने से राधा रानी खुश हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। कृष्ण ने खिल रहे पुष्प को तोड़ लिया और राधा को छेड़ने के लिए उन पर फेंक दिया।
राधा ने भी ऐसा ही श्री कृष्ण के साथ किया। यह देखकर वहां पर मौजूद गोपियों और ग्वालों ने भी एक-दूसरे पर फूल बरसाने शुरू कर दिए। कहते हैं कि तभी से हर साल मथुरा वृंदावन में फूलों की होली खेली जाने लगी।
इस दिन मथुरा और वृंदावन में सभी मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है तथा फूलों की होली खेली जाती है। फुलेरा दूज का उत्सव उत्तर भारत के गांवों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को फूलों से रंगोली बना कर श्री राधा-कृष्ण का विशेष रूप से फूलों से श्रृंगार करके उनका पूजन किया जाता है।