आज शनि प्रदोष व्रत तथा महाशिवरात्रि का शुभ संयोग बना हैं। आइए यहां जानते हैं शनि प्रदोष के दिन कैसे करें पूजन, और क्या जपें मंत्र-
- शनि प्रदोष के दिन व्रतधारी को प्रात: जल्दी जागकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके शिवजी का पूजन करना चाहिए।
- इस दिन पूरे मन से 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करना चाहिए।
- प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 से शाम 7.00 बजे के बीच की जाती है। अत: त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से 3 घड़ी पूर्व शिवजी का पूजन करना चाहिए।
- उपवास करने वाले को चाहिए कि शाम को दुबारा स्नान कर स्वच्छ सफेद रंग वस्त्र धारण करके पूजा स्थल को साफ एवं शुद्ध कर लें।
- पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार कर तथा पूजन की सामग्री एकत्रित करके लोटे में शुद्ध जल भरकर, कुश के आसन पर बैठें तथा विधि-विधान से शिवजी की पूजा-अर्चना करें। 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करते हुए जल अर्पित करें।
- इस दिन निराहार रहें।
- इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर शिवजी का इस तरह ध्यान करें। - हे त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चंद्रमा का आभूषण धारण करने वाले, करोड़ों चंद्रमा के समान कांतिवान, पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कंठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, त्रिशूलधारी, नागों के कुंडल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किए हुए, वरदहस्त, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिवजी हमारे सारे कष्टों को दूर करके सुख-समृद्धि का आशीष दें। इस तरह शिवजी के स्वरूप का ध्यान करके मन ही मन प्रार्थना करें।
- तत्पश्चात शनि प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें और सुनाएं।
- कथा पढ़ने या सुनने के बाद समस्त हवन सामग्री मिला लें तथा 21 अथवा 108 बार निम्न मंत्र से आहुति दें। मंत्र- 'ॐ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा'।
- उसके बाद शिवजी की आरती करके प्रसाद बांटें। उसके बाद भोजन करें।
- ध्यान रहें कि भोजन में केवल मीठी चीजों का ही उपयोग करें।
- अगर घर पर यह पूजन संभव न हो तो व्रतधारी शिवजी के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करके इस दिन का लाभ ले सकते हैं।
- इसके साथ ही इस दिन शनि पूजन का भी अधिक महत्व होने के कारण किसी भी शनि मंदिर में जाकर शनि पूजन करके उन्हें प्रसन्न करें।
मंत्र-
- ॐ नम: शिवाय।
- ॐ प्रां. प्रीं. प्रौ. स: शनैश्चराय नम:।
- ॐ आशुतोषाय नमः।
- ॐ शं शनैश्चराय नम:
- ॐ शिवाय नम:।
- ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ।
- ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।
- सूर्यपुत्रो दीर्घेदेही विशालाक्ष: शिवप्रिय: द मंदचार प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: