What is Kalpavas: प्रयागराज में विश्व विख्यात कुंभ मेला (Prayagraj Mahakumbh) शुरू होने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। 45 दिन चलने वाले कुंभ मेले में लाखों धर्मात्मा साधु-संत पहुंच रहे हैं, वहीं करोड़ों की संख्या में देश-विदेश से गंगा मैया के भक्त आएंगे। कुंभ मेले में साधु-संन्यासी कठिन जप, साधना और तपस्या में लीन दिखाई देंगे तो वही अनुमान है कि लगभग 2-3 लाख श्रृद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए प्रयागराज में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन त्रिवेणी पर कल्पवास करेंगे। यह कल्पवास 21 जनवरी यानी सोमवार से शुरू होगा।
कुंभ के दौरान कल्पवास की अवधि एक महीने की होती है यह पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक चलेगा। हर बारह वर्ष में कुंभ मेला चार प्रमुख स्थान पर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित होता है। उत्तर प्रदेश का प्रयागराज ही एकमात्र ऐसा तीर्थ है, जहां संगमतट पर विधि-विधान और परंपरा के अनुरूप कल्पवास का पालन किया जाता है।
कल्पवास क्या है? : कल्पवास भगवत साधना की एक कठिन तपस्या का जरिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति मोह-माया से मुक्त होकर, स्वनियंत्रण, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक जीवन की तरफ अग्रसर होता है। कल्पवास व्रत के दौरान व्यक्तित्व का शुद्धिकरण और पापों से मुक्ति मिलती है। वर्तमान में कल्पवास नई और पुरानी पीढ़ी को लिए अध्यात्म की राह दिखा रहा है। बदलते परिवेश और परिस्थितियों ने कल्पवास करने वालों के तौर-तरीके में कुछ परिवर्तन ला दिया है। लेकिन उससे कल्पवास करने वालों की संख्या और श्रद्धा में कोई कमी नही आई है।
आदिकाल से होता है कल्पवास : तीर्थंराज प्रयाग में आदिकाल से ही कल्पवास की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ एक मास के कल्पवास शुरू होने के साथ एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है, जितना पुण्य मिलता है। यह परंपरा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से पढ़ने को मिलती है। महाभारत मे कहा गया है कि 100 साल तक बिना अन्न ग्रहण करके की जाने वाली तपस्या का फल, पुण्य माघ मास में कल्पवास करने से प्राप्त हो सकता है। शास्त्रों के मुताबिक कल्पवास की सबसे छोटी अवधि एक रात हो सकती है, इसी तरह तीन रात, 3 महीने, 6 महीने, 6 वर्ष, 12 वर्ष या जीवन पर्यन्त भी कल्पवास व्रत किया जा सकता है।
चार आश्रमों का वर्णन : भारतीय परम्परा में चार आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास का का वर्णन है। कल्पवास के लिए जब व्यक्ति अपने गृहस्थ आश्रम में 50 वर्ष की अवधि पूर्ण कर लेता था तब वह कल्पवास की तरफ बढ़ता था। प्राचीन समय में लोग गृहस्थ जीवन के कार्य पूर्ण करने के बाद अधिकतर समय जंगलों में गुजारा करते थे। जंगल में ईश्वर का भजन, गुणगान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए एक निश्चित समय के लिए करना ही कल्पवास माना गया है।
कल्पवास के दौरान लंबी अवधि के लिए धार्मिक अनुष्ठान, तप-जप होता है। 12 साल में पढ़ने वाले कुंभ की अवधि भी 45 दिन की होती है। इसलिए कल्पवास व्रत के इच्छुक व्यक्ति कुंभ अवधि के दौरान भगवान में लीन होकर भजन, पूजन, कीर्तन, मंत्र जाप और हवन करते है।
कल्पवास के नियम : महर्षि दत्तात्रेय द्वारा पद्म पुराण में लिखा गया है कि 45 दिन तक कल्पवास करने वाले को इन 21 नियमों का पालन करना चाहिए। प्रथम नियम हैं सत्यवचन, द्वितीय अहिंसा, तृतीय इन्द्रियों पर नियंत्रण, चतुर्थ सभी प्राणियों पर दयाभाव, पंचम ब्रह्मचर्य का पालन, छठा व्यसनों का त्याग, सातवां ब्रह्म मुहूर्त में जागना, आठवां नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान, नवां त्रिकाल संध्या, दसवां पितरों का पिण्डदान, ग्यारहवां दान, बारहवां अन्तर्मुखी जप, तेरहवां सत्संग, चौदहवां संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, पंद्रहवां किसी की भी निंदा ना करना, सोलहवां साधु-सन्यासियों की सेवा, सत्रहवां जप एवं संकीर्तन, अठारहवां एक समय भोजन, उन्नीसवां भूमि शयन, बीसवां अग्नि सेवन न कराना और इक्कीसवां देव पूजन है।
हालांकि कल्पवास व्रती के लिए सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी नियम है कि वह दिन में एक बार भोजन करे, गंगा स्नान करते समय मौन धारण करे। दिन में भगवान का जप-कीर्तन जरूर करना चाहिए। कल्पवास श्रद्धालु इस दौरान सत्य बोलने का प्रण लें और हर प्रकार की हिंसा से दूर रहें। इसी के साथ श्रद्धालुओं का अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण हो, ताकि वह मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त शुद्ध हो सके। कल्पवास व्रत यह ब्रह्मचर्य की तरफ भी ले जाता है, ब्रह्मचर्य से आत्मा का शुद्धिकरण और संयमित जीवन जीने की शिक्षा मिलती है।
कल्पवासियों के शिविर की व्यवस्था : कुंभ में कल्पवासियों को कल्पवास कराने की पूरी ज़िम्मेदारी तीर्थराज प्रयाग त्रिवेणी के पंडों की होती है। सभी सनातनी बिरादरियों के पंडे पहले ही यजमान की बुकिंग करके कुंभ मेला स्थल पर प्रशासन से जमीन बुक कर लेते हैं। कल्पवास के लिए अधिकृत जगहों पर पंडे टैंट-तंबू लगवाकर कल्पवासी परिवारों के लिए शिविर बनवाते हैं। इन शिविरों में यजमान आकर पूरी विधि-विधान के साथ व्रत को करते हुए दान-पुण्य करते हैं। इस दौरान कल्पवासी श्रद्धालु ध्यान, सत्संग और साधु-महात्माओं की संगति का लाभ भी पाते हैं।