शेखावत की सक्रियता से वसुंधरा परेशान

जयपुर। भ्रष्टाचार के खिलाफ पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत की मुहिम ने राजस्थान में भाजपा की सरकार को खासा परेशानी मे डाल रखा है। इन दिनों शेखावत जहाँ भी जा रहे हैं वहाँ भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर बोलते हैं। इसके साथ ही वे इस मुद्दे पर संघर्ष कर रहे देश भर के प्रबुद्घ लोगों को भी लामबंद कर रहे हैं।

हालाँकि शेखावत का हमला समग्र रूप में देशव्यापी भ्रष्टाचार पर है। लेकिन इसने विधानसभा चुनावों की संध्या में राजस्थान की वसुंधरा सरकार को एक तरह से कटघरे में खड़ा कर दिया है। वसुंधरा राजे सरकार पर पूरे पाँच साल के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, और आगामी विधानसभा चुनावों में उसके खिलाफ यह मुद्दा सबसे प्रबल रूप में उठने की संभावना है। ऐसे में शेखावत का भ्रष्टाचार पर प्रहार करना भाजपा की सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गया है।

  चुनावों में बढ़ते जातिवाद, धनबल और बाहुबल को लेकर चिंतित शेखावत का कहना है कि चुनाव प्रणाली में सुधारों की जरूरत है। वे कहते हैं कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक कराए बिना चुनाव सुधारों की दिशा में आगे नहीं बढ़ा जा सकता       
बताया जाता है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इससे खासी परेशान हैं। शेखावत को लेकर पिछले लंबे समय से चर्चाएँ चल रही हैं। जिनमें उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा काफी गर्म हैं। उन्हें भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी के बाद बैकअप प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है।

पार्टी के एक वर्ग में शेखावत के आगामी लोकसभा चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी की जगह लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है। लेकिन शेखावत इससे इनकार करते हुए कहते हैं कि सक्रिय राजनीति में लौटने का उनका मानस नहीं है। वे कहते हैं कि राजनीति में सक्रिय हुए बिना भी वे दूसरे बहुत से काम कर सकते हैं।

उनकी यह सक्रियता भ्रष्टाचार,गरीबी जैसे कुछ मूलभूत मुद्दों के खिलाफ संघर्ष को लेकर है। भ्रष्टाचार के खिलाफ तो शेखावत एक अभियान-सा चलाए हुए हैं। उनका मानना है कि भ्रष्टाचार एक असाध्य रोग की तरह हो गया है और आगामी लोकसभा चुनावों के समय यह एक प्रमुख मुद्दा होगा।

शेखावत को लेकर पिछले लंबे समय से चर्चाएँ चल रही हैं। जिनमें उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा काफी गर्म रही हैं। लेकिन शेखावत कहते हैं कि सक्रिय राजनीति में लौटने का उनका मानस नहीं है। वे कहते हैं कि राजनीति में सक्रिय हुए बिना भी वे दूसरे बहुत से काम कर सकते हैं।

शेखावत ने कहा कि अब उनका संघर्ष देश में व्याप्त पाँच प्रमुख समस्याओं जैसे भ्रष्टाचार, गरीबी, आतंकवाद, जातिवाद और बढ़ती हुई जनसंख्या के खिलाफ है। भ्रष्टाचार के खिलाफ तो शेखावत इन दिनों अत्यंत मुखर हैं। उनका कहना है कि यह कैंसर रोग की तरह है, जिस पर समय रहते हुए ध्यान नहीं दिए जाने पर इलाज संभव नहीं है। पूर्व उपराष्ट्रपति शेखावत मानते हैं कि जब तक भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगेगा, देश से गरीबी दूर नहीं हो सकती। वे कहते हैं कि विकास योजनाओं का पैसा जरूरतमंदों तक भ्रष्टाचार की वजह से ही नहीं पहुँच पाता।

अपनी इस लड़ाई के लिए वे देश के ऐसे अनेकों प्रमुख लोगों के साथ निरंतर सम्पर्क बनाए हुए हैं, जो कि इन मुद्दों को लेकर निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। चुनावों में बढ़ते जातिवाद, धनबल और बाहुबल को लेकर चिंतित शेखावत का कहना है कि चुनाव प्रणाली में सुधारों की जरूरत है। वे कहते हैं कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक कराए बिना चुनाव सुधारों की दिशा में आगे नहीं बढ़ा जा सकता।

राजस्थान में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को देखते हुए भी इन दिनों नजरें शेखावत की भूमिका की ओर लगी हुई है। तीन बार राजस्थान की कमान संभाल चुके इस बुजुर्ग नेता से ज्यादा इस प्रदेश की रग-रग से कोई दूसरा नेता वाकिफ नहीं है। राजस्थान में अब तक शेखावत से बड़ा जनाधार दूसरे किसी नेता का नहीं रहा है। ऐसे में शेखावत का अनुभव राजस्थान भाजपा के लिए संजीवनी साबित हो सकता है।

हालाँकि शेखावत राजनीति से दूर देश की मूलभूत समस्याओं के खिलाफ अपने संघर्ष की बात करते हैं लेकिन भाजपा के नेता निरंतर उनसे सम्पर्क बनाए हुए हैं। हाल के दिनों में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दो बार शेखावत से मिलीं और दोनों ही बार उन्होंने दो-दो घंटे से ज्यादा उनसे विचार विमर्श किया।

शेखावत के घर उनकी मौजूदगी में सरकार से नाराज चल रहे मीणा जाति के खाँटी नेता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच मुलाकात हुई। सूत्र बताते हैं कि शेखावत की पहल पर ही दोनों के बीच यह मुलाकात हुई। इसके अलावा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर सहित कई नेताओं ने उनसे विचार विमर्श किया है। पूर्व विदेश मंत्री जसवंतसिंह तो शेखावत के निरंतर सम्पर्क में बने हुए ही हैं।

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