राजस्थान में भाजपाइयों के चेहरे चमके

बुधवार, 4 दिसंबर 2013 (20:46 IST)
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विधानसभा चुनाव 2013 के लिए रिकॉर्ड मतदान के बाद अब चारों ओर 'भगवा' लहरने का दावा किया जा रहा है। एक्जिट पोल के परिणामों ने तो भाजपा उम्मीदवारों के चेहरे की चमक और बढ़ा दी है। सट्टा बाजार भी राज्य में भाजपा की ही सरकार बना रहा है। दूसरी ओर कांग्रेसियों के चेहरे फीके नजर आ रहे हैं।

आमतौर पर चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ने को एंटी-इनकमबेंसी से जोड़कर देखा जाता है। अत: निश्चित ही इसका फायदा भाजपा को ही मिलता दिख रहा है। इस बार राज्य में मतदान पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक मतदान हुआ है।

सत्ताधारी कांग्रेस की बात करें तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने सरल स्वभाव और कुशल प्रबंधन की वजह से बढ़त बना सकते थे, लेकिन उनकी सरकार में दागी मंत्रियों, टिकट वितरण में गलत फैसले, लगातार बढ़ती महंगाई का खामियाजा कांग्रेस सरकार उठाना पड़ सकता है।

हालांकि गेहलोत ने चुनाव से करीब छह माह पहले राज्य में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं की सौगात दी थी, लेकिन उसका फायदा होता उन्हें नहीं दिख रहा है। जनता एक बहुत बड़ा फैक्टर होता है 'सरकार' बनाने में, लेकिन उसे ही यदि महंगाई की मार ले डूबे तो वह भी किसी को नहीं छोड़ती। बढ़ती महंगाई के कारण गहलोत भी राज्य में अपनी 'साख' गंवा बैठे।

भाजपा के पक्ष में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह रही है कि वसुंधरा राजे ने अपने सुराज संकल्प-पत्र (घोषणा-पत्र) में विशेषकर महिलाओं, युवाओं और अल्पसंख्यकों के विकास पर जोर देने की बात भी कही है, जिसे कांग्रेस की सरकार ने नकारा ही है। कांग्रेस ने टिकट वितरण में अल्पसंख्यकों का भी ध्यान नहीं रखा, जिससे पार्टी को उनकी नाराजी भी झेलना पड़ सकती है।

राहुल गांधी द्वारा युवाओं को आगे बढ़ाने की बात भी झूठी साबित हुई। टिकट वितरण में युवाओं को किनारे कर 80 वर्ष तक के लोगों को उम्मीदवार बनाया गया। रही बात महिलाओं की तो इसी सरकार के मंत्रियों पर महिलाओं को लेकर काफी आरोप लगे। टिकट वितरण में अपने ही फार्मूले को लागू कराने में राहुल नाकाम रहे।

उन्होंने युवाओं को वरीयता देते हुए तय किया था कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को तथा पिछले चुनाव में जो प्रत्याशी 15 हजार से अधिक वोटों से हारा है उसे टिकट नहीं दिया जाएगा, लेकिन ऐसे नेता टिकट लेने में कामयाब रहे। कुल मिलाकर देखा जाए तो टिकट वितरण, युवाओं, महिलाओं, अल्पसंख्यकों को नकारने पर कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

यदि मुख्यमंत्री पद की बात करें तो कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा डॉ. बीडी कल्ला, डॉ. सीपी जोशी सहित कई दावेदार हैं, लेकिन भाजपा की ओर से केवल और केवल मात्र एक प्रदेशाध्यक्ष वसुंधरा राजे ही राजे ही 'फ्री-हैंड' मुखिया हैं।

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