आज के युवा और त्‍योहार राखी का

कहते हैं कि दुनिया में अगर कुछ शाश्‍वत है तो वह है - परिवर्तन। समय बदला, मूल्‍य बदले, मान्‍यताएँ बदलीं और परंपराएँ भी बदल गईं। राखी भाई-बहन के प्‍यार का प्रतीक है। भाई-बहन का प्‍यार तो वही है पर इस प्‍यार भरे त्‍योहार को मनाने का ढ़ंग काफी बदल गया है। युवा और बच्‍चे यूँ तो परिवार के साथ इस त्‍योहार को परंपरागत ढ़ंग से मनाते हैं, लेकिन बदलते समय की बदलती जरूरतें अब त्‍योहार को कितना बदल रही हैं, यह जानने के लिए हमने नई पीढ़ी के कुछ बच्‍चों और युवाओं से बातचीत की :

WDWD
एक दिन झगड़ा बंद
14 वर्षीय अपूर्व दीक्षित कहते हैं कि मेरा अक्‍सर अपनी बहन के साथ छोटी- छोटी बातों पर झगड़ा हो जाता है। झगड़ा होने के बाद मैं उसे मनाता भी हूँ। राखी के दिन न जाने क्‍या हो जाता है कि हम आपस में झगड़ा नहीं करते। उसे चिढ़ाने के लिए मैं हर बार नया तरीका ढूँढ लेता हूँ। पिछली राखी पर उसने मुझे नाक से तिलक लगाया था। मैंने भी उसे गिफ्ट में चॉकलेट का खाली डिब्‍बा दे दिया था। इस बार भी मैं कुछ नया और मजेदार करने का प्‍लान बना रहा हूँ।

परंपरागत तरीके से मनाते हैं, राख
WDWD
बी.कॉम की छात्रा मयूरी जैन बताती हैं कि हम लोग तो परंपरागत ढ़ंग से राखी मनाना पसंद करते हैं। वे कहती हैं कि जब छोटे थे तब दिन भर साथ में रहा करते थे। इ‍सलिए तब इस त्‍योहार का महत्‍व समझ में नहीं आया। अब जब एक-दूसरे को ज्‍यादा समय नहीं दें पाते तो राखी का महत्‍व समझ में आ रहा है। मैं राखी की सारी रस्‍में उसी तरह से निभाती हूँ, जैसी माँ ने मुझे बचपन में सिखाई थीं।

WDWD
औपचारिकता नहीं सहजता होनी चाहिए
20 वर्षीय आश्रय कहते हैं कि भाई-बहन के रिश्‍ते में औपचारिकता कम और सहजता ज्‍यादा होनी चाहिए। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जो साल भर अपने भाई-बहन को नहीं पूछते। बस राखी के दिन एक-दूसरे से मिलते हैं। मैं भले ही अपनी बहनों से राखी के दिन न मिल सकूँ, लेकिन जब कभी मेरी बहनों को मेरी जरूरत होगी, मैं उनके साथ रहूँगा। वैसे राखी के पहले ही मुझे अपनी बहनों की राखियाँ और ई-कार्ड मिल जाते हैं। राखी के दो-तीन दिन पहले से ही मैं घर पर कूरियर आने का इंतजार करने लगता हूँ।

WDWD
बच्‍चों से बँधवाती हूँ, राखी
मौसमी जोशी बताती हैं कि राखी मनाने का मेरा तरीका थोड़ा अलग है। मुझे बचपन से ही राखी बाँधने का नहीं, बँधवाने का शौक था। जब छोटी थी तो मेरे जिद करने पर कोई भी मुझे राखी बाँध देता था। मेरी ये आदत अभी तक नहीं गई। मैं अब अपनी बहन की बेटी से राखी से बँधवाती हूँ और मैं भी उसे राखी बाँधती हूँ। इस अजीब-सी रस्‍म (आदत) की वजह से पहले सभी मुझे डाँटा करते थे, पर मुझे लगता है कि त्‍योहार खुशियाँ मनाने के लिए होते हैं। माना कि कुछ रस्‍मों का अपना महत्‍व होता है, पर रस्‍में बच्‍चों की खुशी से बढ़कर नहीं होतीं।

जैसे चाहो, वैसे मनाओ राखी
WDWD
तेईस वर्षीय गौरव कहते हैं कि हर राखी पर भाई-बहन एक- दूसरे के साथ हों, ऐसा संयोग तो कुछ खुशनसीबों के नसीब में ही होता है। राखी के दिन या उससे पहले मुझे मेरी बहन की राखी मिल जाती है। राखी की छुट्टी वाले दिन मैं कभी परिवार के साथ पिकनिक मनाने चला जाता हूँ तो कभी हम लोग फिल्‍म देखने निकल जाते हैं। राखी मनाने का मेरा कोई निश्चित तरीका नहीं है। जब जैसा वक्‍त, जैसी परिस्थिति हुई, वैसे ही मनाता हूँ राखी।