चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। इसलिए इसे रामनवमी कहते हैं। पूरे देश में रामनवमी का पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन श्रीराम के बालरूप की पूजा होती है। आओ जानते हैं कि पूजा के क्या है शुभ मुहूर्त और कैसे किस मंत्र से करें श्रीराम की पूजा।
श्री राम नवमी के शुभ संयोग :-
सर्वार्थसिद्धि योग- प्रात: 06:25 से 10:59 तक। इसके बाद रात्रि में अमृतसिद्धि योग, गुरू पुष्य योग और पुन: सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा।
रामनवमी की पूजा के शुभ मुहूर्त:-
ब्रह्म मुहूर्त:- प्रात: 04:49 से 05:37 तक।
अभिजीत मुहूर्त:- दोपहर 12:07 से 12:55 तक।
अमृत काल:- शाम 08:18 से 10:05 तक।
रामनवमी पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त:- 11:11:38 से 13:40:20 तक।
रामनवमी का मंत्र:-
ॐ रामभद्राय नम:
ॐ रामचंद्राय नम:
ॐ नमो भगवते रामचंद्राय
रां रामाय नम:
रामनवमी की सरल पूजा विधि | Simple worship method of Ram Navami:
1. रामनवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर प्रभु श्री राम के बालरूप की पूजा की जाती है।
2: बालक रामलला को झुले में विराजमान करके, झुले को सजाया जाता है और दिन में 12 बजे के आसपास उनकी पूजा की जाती है।
3. ताबें के कलश में आम के पत्ते, नरियल, पान आदि रखकर चावल का ढेर पर कलश स्थापित करते हैं और उस के आसपास चौमुखी दीपक जलाते हैं।
4. फिर श्री राम को खीर, फल, मिष्ठान, पंचामृत, कमल, तुलसी और फूल माला अर्पित करते हैं।
5. नैवद्य अर्पित करने के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं।
6. इस दिन पंचामृत के साथ ही पीसे हुए धनिये में गुड़ या शक्कर मिलाकर प्रसाद बनाकर बांटते हैं।
श्रीराम जन्म कथा | Shri ram janm katha:-
- रामचरितमानस के बालकांड के अनुसार पुत्र की कामना के चलते राजा दशरथ के कहने पर वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। श्रृंगी ऋषि दशरथजी के दामाद थे। उनकी पुत्री का नाम शांता था। इस यज्ञ के बाद कौसल्या आदि प्रिय रानियों को एक-एक फल खाने पर पुत्र की प्राप्त हुई।
- श्री राम का जन्म भारतवर्ष में सरयू नदी के पास स्थित अयोध्या नगरी में एक महल में हुआ था। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। जन्म होते ही जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए। शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियां अमृत की धारा बहा रही थीं।
- जन्म लेते ही ब्रह्माजी समेत सारे देवता विमान सजा-सजाकर पहुंचे। निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया। गंधर्वों के दल गुणों का गान करने लगे। सभी देवाता राम लला को देखने पहुंचे।
- राजा दशरथ ने नांदीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और द्वीजों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया। संपूर्ण नगर में हर्ष व्याप्त हो गया। ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया। जिस प्रकार से वह सजाया गया। चारों और खुशियां ही खुशियां थीं। घर-घर मंगलमय बधावा बजने लगा। नगर के स्त्री-पुरुषों के झुंड के झुंड जहां-तहां आनंदमग्न हो रहे हैं।