Ramayan katha: माता सीता को साक्षात लक्ष्मी माना जाता है। वे श्रीराम की ही तरह शक्तिशाली हैं। वे चाहती तो रावण को उस वक्त भस्म कर देतीं जब वह हरण करने आया था। वे चाहती तो अशोट वाटिका में पहुंचकर भी रावण को भस्म कर देती है या उसका किसी भी वक्त वध कर देती। लेकिन माता सीता ने ऐसा क्यों नहीं किया जबकि वो तो खुद ही आत्म रक्षा में सक्षम थीं? वास्तव में माता सीता स्वयं शक्ति स्वरूपा थीं।
खीर कथा : मान्यता के अनुसार कहते हैं कि जब सीताजी ससुराल आयी तो उन्होंने सबसे पहले ऋषि-मुनियों और परिवारीजनों के लिए खीर बनाई और और दशरथ सहित सभी को परोसी। जब वे उन्हें खीर परोस रही थीं, उसी समय तेज हवा का झोंका चला और सभी ने अपनी अपनी पत्तल संभाली, लेकिन उस दौरान राजा दशरथ की खीर में एक छोटा सा घास का तिनका आकर गिर गया।
माता सीता ने उस तिनके को देख लिया था परंतु खीर से वो तिनका सबके सामने कैसे निकालें, ये बड़ी दुविधा थी। तभी उन्होंने तिनके को दूर से घूरा और मां सीता की दृष्टि से ही वो तिनका पुन: उड़ा और हवा में ही राख बन गया। सीता जी को लगा कि उनका ये चमत्कार किसी ने नहीं देखा, लेकिन राजा दशरथ ने ये सब देख लिया था और वो समझ गए थे कि यह कोई साधारण स्त्री नहीं, बल्कि जगत जननी हैं। उनके इस चमत्कार को देखकर वे डर भी गए थे।
माता सीता ने दिया वचन : खीर खाने के बाद राजा दशरथ अपने कक्ष में चले गए और बाद में उन्हों ने सीता जी को अपने कक्ष में बुलवाया। वहां उन्होंने माता सीता से कहा कि आपका वह चमत्कार मैंने देख लिया है और अब मैं समझ गया हूं कि आप कौन हैं। इसलिए आज आप मुझे एक वचन दीजिए कि जिस दृष्टि से आपने उस तिनके को देखा, उससे कभी किसी और को नहीं देखेंगी। इस बात को सुनकर माता सीता ने दशरथजी को वचन दिया कि मैं कभी किसी को इस दृष्टि से नहीं देखूंगी।
रावण एक तिकके के कारण बचा रहा : जब रावण ने उनका हरण किया था, तो वो स्वयं ही उसे भस्म कर सकती थीं, परंतु वो राजा दशरथ को दिए वचन से बंधी हुई थीं। इसलिए जब रावण उनके करीब आने का प्रयास करता था, या उन्हें धमकाता था, तो वो उसे कुछ नहीं करतीं, बस हाथ में तिनका उठाकर घूरने लगती थीं और उसके प्रति अपने क्रोध को नियंत्रित करती थीं।