मादा शावक सियांग को स्थानीय पर्यावरणविदों ने उस समय बचाया था, जब वह केवल एक महीने की थी। इस नन्हीं भालू को ईटानगर स्थित रीछ पुनर्वास एवं संरक्षण केंद्र (सीबीआरसी) लाया गया था, जहां इसके स्वास्थ्य की देखभाल की गई।
एक अधिकारी ने बताया कि इस शावक को सियांग नदी की तलहटी में पाया गया था, जहां वह बिना पानी के तड़प रही थी, इसलिए उसका नाम सियांग नदी के नाम पर रखा गया। सीबीआरसी के अधिकारी ने कहा कि केंद्र में सियांग को तीन और दोस्त मिले, जिन्हें उसी की तरह बचाया गया था। इनमें दो नर-डेन और इटना तथा एक और मादा शावक देवी शामिल है।
अधिकारी के मुताबिक, चारों शावक जल्द ही आपस में घुलमिल गए। उन्होंने कहा, भालू के अनाथ शावकों को जंगल में छोड़े जाने से पहले उन्हें वातावरण के अनुकूल ढालने की प्रक्रिया की जाती है। इन चारों भालुओं को इस साल दिसंबर या अगले वर्ष जनवरी की शुरुआत में पक्के बाघ अभयारण्य में छोड़ा जाएगा।
सीबीआरसी के प्रमुख पंजित बासुमतारी ने बताया कि सियांग चारों शावकों में सबसे ज्यादा सक्रिय है और वन कर्मियों की पसंदीदा भी। उन्होंने कहा कि अवैध शिकारी अक्सर एशियाई भालुओं को उनकी चमड़ी के लिए मारते हैं, जिससे उनके शावक अनाथ हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि वनों का दायरा घटने और अन्य कारणों से एशियाई भालुओं की संख्या में कमी आई है।(भाषा)
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