असम सरकार (Assam government) ने मंगलवार को कहा कि वह राज्य के 5 मूल मुस्लिम समुदायों (Muslim communities) का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण कराएगी ताकि उनके उत्थान के लिए कदम उठाए जा सकें। राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने इस संबंध में राज्य सचिवालय में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक की।
मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर लिखा कि जनता भवन में एक बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने संबंधित अधिकारियों को असम के मूल मुस्लिम समुदायों (गोरिया, मोरिया, देशी, सैयद और जोल्हा) की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की समीक्षा करने का निर्देश दिया है।
इसमें कहा गया है कि इस समीक्षा के निष्कर्ष अल्पसंख्यक समुदायों के व्यापक सामाजिक-राजनीतिक और शैक्षणिक उत्थान के उद्देश्य से उपयुक्त कदम उठाने में राज्य सरकार का मार्गदर्शन करेंगे। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है, जब बिहार में नीतीश कुमार नीत सरकार ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए जिसके अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है।
विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने कहा कि असम में सभी समुदायों खासतौर पर पिछड़े वर्ग से जुड़े लोगों का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। गोरिया और मोरिया मूल मुस्लिम समुदाय हैं और ओबीसी श्रेणी से संबंधित हैं। फिर सरकार चयनात्मक सर्वेक्षण क्यों कर रही है? यदि उनका इरादा अच्छा है तो ओबीसी के साथ-साथ एससी और एसटी सभी के लिए सर्वेक्षण होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि केवल मुसलमानों, मुख्य रूप से ओबीसी मुसलमानों के लिए सर्वेक्षण करना भाजपा सरकार की विभाजनकारी रणनीति है। यह बिहार सरकार के जाति सर्वेक्षण के बाद प्रतिक्रियास्वरूप कदम है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली असम सरकार ने मूल मुस्लिम समुदायों के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के लिए धन आवंटित किया था, लेकिन यह कभी हुआ नहीं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार असम में कुल मुस्लिम आबादी 1.07 करोड़ थी, जो राज्य के कुल 3.12 करोड़ निवासियों का 34.22 प्रतिशत थी। राज्य में 1.92 करोड़ हिन्दू थे, जो कुल जनसंख्या का लगभग 61.47 प्रतिशत था।(भाषा)