Classes being held in bunkers in Jammu Kashmir: 22 अप्रैल को पहलगाम के बैसरन में आतंकियों द्वारा 26 नागरिकों की हत्या के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो तनाव बढ़ा उसका परिणाम यह है कि एलओसी (LoC) से सटे क्षेत्रों में पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित होने लगी है और कई गांवों में स्कूलों के अंदर बनाए गए भूमिगत बंकरों में कक्षाएं लगाई जा रही हैं।
हमले से बचने के गुर सीख रहे हैं विद्यार्थी : इन स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई के साथ ही हमले की स्थिति में बचाव के गुर और तौर तरीके भी सिखाए जा रहे हैं। उन्हें बताया जा रहा है कि अगर घंटी एक मिनट तक लगातार बजती है, तो कक्षाओं से बाहर भाग जाओ और भूमिगत बंकर में छिप जाओ। जम्मू कश्मीर में सीमा के नजदीक रहने वाले छात्रों को यही बताया जा रहा है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा है।
हालांकि इन जिलों में रहने वाली पुरानी पीढ़ी का कहना है कि उन्होंने सबसे बुरा समय देखा है, लेकिन छात्र अधिक भयभीत हैं, क्योंकि वे अपेक्षाकृत शांत वर्षों में पैदा हुए हैं, जब सीमा पर शांति थी। कश्मीर स्कूल शिक्षा विभाग के एक पूर्व प्रिंसिपल और वरिष्ठ शिक्षा अधिकारी, जो सदी के अंत में गुरेज घाटी में तैनात थे, याद करते हैं कि जब सीमा पर तनाव था, तब शिक्षा प्रणाली लगभग ध्वस्त हो गई थी।
वे कहते थे कि उन्हें लंबे समय तक स्कूल बंद करने पड़े, क्योंकि गोले सीधे परिसर में गिरते थे और बंकर बहुत दुर्लभ थे। जबकि एक शिक्षक का कहना था कि ये अभ्यास या जागरूकता छात्रों के बीच घबराहट को कम करने के लिए हैं क्योंकि इससे उनकी एकाग्रता प्रभावित होती है। वे कहते थे कि हमारी पीढ़ी जानती है कि सीमा पर तनाव शिक्षा क्षेत्र को कैसे प्रभावित करता है। लेकिन हम अपनी युवा पीढ़ी के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहते।
जानकारी के लिए पिछले दशक में, सीमाओं के साथ संवेदनशील स्थानों पर लगभग 15000 सामुदायिक और निजी बंकरों का निर्माण किया है। लेकिन युद्ध विराम समझौते से आई सापेक्षिक शांति ने लोगों को उन्हें बंद करके स्टोररूम के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया। करनाह के बटपोरा गांव के राजा अब्दुल हमीद खान कहते थे कि अब उन्हें अब साफ कर दिया है क्योंकि एलओसी पर संघर्ष के भड़कले का खतरा फिर से मंडराने लगा है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala