बाढ़ से मछलियों ने 'पलायन' किया था, अब मछुआरे मजबूर हैं...

मुस्तफा हुसैन

सोमवार, 16 दिसंबर 2019 (19:02 IST)
एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील के मछुआरे दो जून रोटी को मोहताज हो चले हैं। गांधीसागर बांध में आए सैलाब और उसके बाद खोले गए डेम के गेट के कारण हज़ारों टन मछलियां बहकर राजस्थान के डेमों में चली गईं, जिसका परिणाम यह हुआ कि अब मछुआरों को पूरे दिन में 2 किलो मछली भी नहीं मिल रही है।

इसके चलते मछुआरे पलायन कर राजस्थान की ओर अपना रुख करने लगे हैं। गांधी सागर के किनारे इस समय सूने हैं, नावें खड़ी हैं। गांधी सागर डेम में 13-14 सितंबर को सैलाब आया और उसके बेक वाटर ने प्रदेश के सरहदी जिले नीमच-मंदसौर के करीब 100 गांवों में तबाही ला दी। जिसके चलते गांधी सागर के वाटर लेवल को मेंटेन करने के लिए उसके तमाम गेट खोलने पड़े और उसी के चलते डेम में मौजूद हज़ारों टन मछलियां राजस्थान के डेमो में चली गईं।

इस संबंध में अपनी फरियाद सुनाते हुए मछुआरा राधेश्‍याम कोठारी कहते हैं गांधी सागर डेम में मछली पकड़कर अपना पेट पालने वाले रामपुरा के करीब 800 मछुआरा परिवार मुश्किल में हैं, क्योंकि डेम में मछली नहीं बची डेम के गेट खोले जाने के कारण तमाम मछलियां आगे राजस्थान के डेमों में चली गईं।

रामपुरा के मछुआरे सुरेश का कहना है कि दिनभर डेम में जाल डालने के बावजूद मात्र 2 किलो मछली मिलती है। आखिर इससे परिवार कैसे पले। पहले करीब 30 से 40 किलो मछली एक मछुआरा लेकर आता था। ऐसे हालात में अब मछुआरे रामपुरा से पलायन कर पड़ोसी राज्य राजस्थान में रोजगार की तलाश में जा रहे हैं।

मछुआरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले पूर्व विधायक नंदकिशोर पटेल कहते हैं कि अतिवृष्टि में भारी नुकसान हुआ है। कमलनाथ सरकार एलर्ट है। उन्हें मदद की गई है, मुआवजा भी दिया गया है, लेकिन यह सही है कि मछलियां बहकर राजस्थान के डेमो में चली गई हैं।

इस मामले में प्रभारी मंत्री से बात हुई है, जल्दी ही कुछ करेंगे। वहीं इस पूरे मामले पर जिला कलेक्टर अजय गंगवार ने कहा कि वे मत्स्य विभाग के अफसरों के साथ बात कर मछुआरों की मुश्किलों को समझेंगे और कोई हल ढूंढा जाएगा।

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