‘कैश एट जज डोर’ मामले में 17 साल बाद आया फैसला, पूर्व हाईकोर्ट जस्टिस निर्मल यादव बरी

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

शनिवार, 29 मार्च 2025 (19:26 IST)
न्यायाधीश के आवास के दरवाजे पर नकदी मिलने के मामले के 17 साल बाद यहां विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) निर्मल यादव और चार अन्य को बरी कर दिया। इस मामले में 13 अगस्त 2008 को हाईकोर्ट की एक अन्य कार्यरत न्यायाधीश न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर के आवास पर कथित रूप से 15 लाख रुपए से भरा एक पैकेट गलत तरीके से पहुंचा दिया गया था।

आरोप लगाया गया था कि यह नकदी न्यायमूर्ति निर्मल यादव को एक संपत्ति सौदे को प्रभावित करने के लिए रिश्वत के रूप में दी जानी थी। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की विशेष न्यायाधीश अलका मलिक की अदालत ने शनिवार को यह फैसला सुनाया। बचाव पक्ष के वकील विशाल गर्ग नरवाना ने बताया कि अदालत ने पूर्व न्यायाधीश निर्मल यादव और चार अन्य को बरी कर दिया है। मामले में कुल पांच आरोपी थे, जिनमें से एक की सुनवाई के दौरान मौत हो गई।
 
नरवाना ने यहां कहा कि आज अदालत ने मामले में फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) निर्मल यादव को बरी कर दिया गया है। उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे। अदालत ने गुरुवार को न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में अंतिम दलीलें सुनी थीं और फैसला सुनाने के लिए 29 मार्च की तारीख तय की थी।
 
इस मामले में हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल, दिल्ली के होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, व्यवसायी राजीव गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति का नाम भी सामने आया था। आरोपियों में से एक संजीव बंसल की फरवरी 2017 में बीमारी से मौत हो गई थी। मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी गई, जिसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई। हालांकि, बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया।
 
यह फैसला 14 मार्च को आग लगने की घटना के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के लुटियंस आवास में ‘‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’’ मिलने को लेकर उठे विवाद के बीच आया है।
 
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति मामले की जांच कर रही है। न्यायमूर्ति वर्मा ने नकदी रखे होने की किसी भी जानकारी से इनकार किया है।
 
न्यायाधीश के घर के दरवाजे पर नकदी मामले में न्यायमूर्ति यादव का नाम आने के बाद, उनको उत्तराखंड उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। दिसंबर 2009 में, सीबीआई ने मामले में एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की, जिसे मार्च 2010 में सीबीआई अदालत ने खारिज कर दिया और फिर से जांच का आदेश दिया।
 
सीबीआई द्वारा न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बाद, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने नवंबर 2010 में इसे मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति ने मार्च 2011 में अभियोजन की मंजूरी प्रदान की थी।
 
सीबीआई ने 4 मार्च, 2011 को न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया, जो उस समय उत्तराखंड उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थीं। उन्हें नवंबर 2009 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से स्थानांतरित किया गया था। विशेष सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2014 को मामले में न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ आरोप तय किये थे, जब उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
 
सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति यादव ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय अपराध किया। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 84 में से 69 गवाहों से पूछताछ की। 17 साल की सुनवाई अवधि में कई न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की। इनपुट भाषा 

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी