मायावती : राजनीति की गहरी समझ ने बनाया लोकतंत्र का करिश्मा

रविवार, 23 सितम्बर 2018 (15:00 IST)
नई दिल्ली। देश में दलित राजनीति का सबसे कद्दावर चेहरा और 4 बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल चुकीं मायावती ने एक जमाने में 'सामाजिक परिवर्तन' का नारा देकर उत्तरप्रदेश की चुनावी धारा का रुख मोड़ दिया था और आज तमाम आरोपों और विवादों के बावजूद वे अपने करोड़ों अनुयायियों की प्रिय 'बहनजी' हैं।
 
 
तीसरे मोर्चे की नेता के तौर पर एक बार फिर देश की राजनीति में हलचल मचाने को तैयार मायावती अपनी शर्तों पर अपने चुनावी व्यूह की रचना कर रही हैं। विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी गठबंधन और वक्त की नजाकत के अनुसार बेझिझक दोस्त और दुश्मन बदल लेने की उनकी रणनीति उन्हें क्षेत्रीय राजनीति से आगे देश के नक्शे पर एक बड़ी जगह दिला सकती है।
 
15 जनवरी 1956 को नई दिल्ली के श्रीमती सुचेता कृपलानी अस्पताल में जन्मीं मायावती के पिता प्रभुदास दूरसंचार केंद्र में नौकरी किया करते थे। 19 बरस में दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज से बीए करने के बाद मायावती ने मेरठ विश्वविद्यालय से एलएलबी किया और गाजियाबाद के एक कॉलेज से बीएड करने के बाद दिल्ली में इन्द्रपुरी में जेजे कॉलोनी में स्थित एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगीं।
 
मायावती स्कूल में नौकरी भले कर रही थीं, लेकिन उनके सपने बहुत ऊंचे थे जिन्हें पूरा करने के लिए वे भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। उन दिनों कांशीराम की अगुवाई में देश में जातीय राजनीति पनपने लगी थी। हालांकि इससे पूर्व 1977 में मायावती अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के उत्थान के लिए काम करने वाले कांशीराम के संपर्क में आईं।
 
कहते हैं कि कांशीराम ने मायावती की वाकपटुता और राजनीतिक समझ से प्रभावित होकर उन्हें अपने साथ काम करने का न्योता दिया और उनकी आईएएस की तैयारी पर कहा कि 'मैं तुम्हें इतना बड़ा नेता बना दूंगा कि एक दिन आईएएस अधिकारियों की एक पूरी कतार तुम्हारे सामने तुम्हारे आदेश के इंतजार में खड़ी होगी।'
 
कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की और मायावती को अपनी टीम में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया। अगले 5 वर्ष में मायावती ने उत्तरप्रदेश में 'सामाजिक परिवर्तन' का नारा देकर दलितों और पिछड़े वर्ग में गहरी पैठ बना ली। 1989 में वे पहली बार लोकसभा के लिए चुनी गईं और उनकी पार्टी ने 13 सीटें जीतकर अपनी मजबूती का परिचय दिया।
 
मायावती को 1995 में कुछ वक्त के लिए उत्तरप्रदेश की गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बनाया गया और 1997 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बनीं। उसके बाद 2002 से 2003 और 2007 से 2012 के बीच वे फिर से मुख्यमंत्री बनीं। उन्हें भारत की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री के साथ ही प्रथम दलित मुख्यमंत्री होने का श्रेय भी हासिल है।
 
एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वालीं मायावती के इस तरह मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने पर देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने इसे 'लोकतंत्र का करिश्मा' करार दिया था और आज जिस तरह से देश का विपक्ष बिखरा हुआ है, मायावती उसे एक मंच पर लाकर राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव और अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव में अगर कोई उलटफेर कर गईं, तो यह बहुत से लोगों के अनुमानों से भी बड़ा करिश्मा होगा। (भाषा)

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