देहरादून। उत्तराखंड राज्य की महिलाओं को राज्य लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित सेवा, प्रवर सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को हाई कोर्ट के खत्म करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। राज्य सरकार ने महिला आरक्षण को यथावत रखने के लिए राज्य सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर की थी।
उत्तराखंड सरकार ने ली राहत की सांस : सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड सरकार की विशेष अनुग्रह याचिका (एसएलपी) पर आज शनिवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को स्टे करने से उत्तराखंड सरकार ने राहत की सांस ली है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई कर राज्य के महिलाओं के लिए राज्य लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित सेवा, प्रवर सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में क्षैतिज आरक्षण वाले शासनादेशों पर रोक लगा दी थी।
अदालत की रोक के बाद प्रदेश सरकार ने क्षैतिज आरक्षण को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई थी। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के खिलाफ हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत उत्तरप्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक: उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले साल 2006 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी। याचिकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा था कि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने 31 विभागों के 224 खाली पदों के लिए पिछले साल 10 अगस्त को विज्ञापन जारी किया था।
अनारक्षित श्रेणी की 2 कट ऑफ लिस्ट : राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से डिप्टी कलेक्टर समेत अन्य उच्च पदों के लिए हुई उत्तराखंड स्तरीय परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी की 2 कट ऑफ लिस्ट निकाली गई जिसमें उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों की कट ऑफ 79 थी जबकि बाहर की महिलाओं के 79 से अधिक होने पर भी उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया जिससे वे आयोग की परीक्षा से बाहर हो गए।
याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 के विपरीत बताते हुए तर्क दिया था कि संविधान के अनुसार कोई भी राज्य सरकार जन्म एवं स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकती, ये अधिकार केवल संसद को है।