पार्टी नेताओं ने कहा कि त्रिपुरा में मिली भारी शिकस्त के बाद माकपा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए सही रणनीति अपनाने को लेकर पार्टी के अंदर कई सवाल उठ रहे हैं। त्रिपुरा विधानसभा चुनावों में शनिवार को भाजपा-आईपीएफटी ने मिलकर इतिहास रचते हुए दो-तिहाई बहुमत से जीत दर्ज की। इस जीत से राज्य में माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के 25 साल के निर्बाध शासन का खात्मा हो गया।
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य हन्नन मोल्लाह ने बताया कि त्रिपुरा में हार के बाद पार्टी सबसे मुश्किल दौर का सामना कर रही है। इस हार ने हमें नए तरीके से फिर से सोचने पर मजबूर किया है तथा हमने अपने मसौदा प्रस्ताव में कहा है कि हम कांग्रेस के साथ कोई तालमेल नहीं चाहते, पर त्रिपुरा में हार के बाद अब बिलकुल नई परिस्थिति सामने आ गई है। हमें अपनी रणनीतियों एवं राजनीतिक धारा पर फिर से विचार करना होगा।
बहरहाल, 21 जनवरी को माकपा केंद्रीय समिति ने पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी द्वारा प्रस्तावित कांग्रेस के साथ गठबंधन संबंधी प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था। पार्टी ने एक नया मसौदा प्रस्ताव मजूर किया जिसे अगले माह पार्टी की कांग्रेस के समक्ष रखा जाएगा। इसमें कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन से इंकार किया गया है। माकपा पोलित ब्यूरो के एक अन्य सदस्य मोहम्मद सलीम ने कहा कि पार्टी त्रिपुरा में मिली हार सहित तमाम पहलुओं पर चर्चा करेगी।
बहरहाल, केंद्रीय समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया कि मौजूदा हालात में ऐसी संभावनाएं अधिक हैं जिनमें कांग्रेस के साथ तालमेल के रास्ते खुले हों तथा कांग्रेस के साथ तालमेल के लिए बीच का रास्ता चुनना होगा। हम भाजपा को वाम धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक बलों के बीच विभाजन का लाभ लेने नहीं दे सकते। (भाषा)