RBI के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कार्यकाल समाप्त होने से 6 माह पहले दिया इस्तीफा
सोमवार, 24 जून 2019 (17:25 IST)
नई दिल्ली। रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के पुरजोर समर्थक माने जाने वाले डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने निजी कारणों का हवाला देते हुए केंद्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह इस्तीफा अपना 3 साल का कार्यकाल समाप्त होने से 6 महीने पहले दिया है।
पिछले 7 महीनों में आरबीआई के शीर्ष पदों में से यह दूसरा बड़ा इस्तीफा है। इससे पहले दिसंबर 2018 में गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दिया था जबकि उनका कार्यकाल करीब 9 महीने बचा था।
केंद्रीय बैंक ने सोमवार को जारी एक संक्षिप्त बयान में कहा कि कुछ सप्ताह पहले आचार्य ने आरबीआई को पत्र लिखकर सूचित किया था कि अपरिहार्य निजी कारणों के चलते 23 जुलाई 2019 के बाद वे डिप्टी गवर्नर के अपने कार्यकाल को आगे जारी रखने में असमर्थ हैं। बयान के अनुसार सक्षम प्राधिकरण उनके इस पत्र पर आगे कार्रवाई पर विचार कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति ने आचार्य की नियुक्ति की थी इसलिए उनका त्यागपत्र भी वही समिति स्वीकार करेगी। आचार्य के इस्तीफे के बाद आरबीआई में अब 3 डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन, बीपी कानूनगो और एमके जैन बचे हैं।
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में वित्त विभाग के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में अर्थशास्त्र के सीवीस्टार प्रोफेसर आचार्य को दिसंबर 2016 में 3 साल के लिए डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया था। जनवरी 2017 में उन्होंने आरबीआई में पद संभाला।
आईआईटी बॉम्बे से बीटेक और कम्प्यूटर साइंस तथा इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने वाले आचार्य ने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से ही वित्त पर पीएचडी डिग्री हासिल की है। वे ऐसे समय केंद्रीय बैंक से जुड़े, जब शीर्ष बैंक नोटबंदी के बाद धन जमा करने और निकासी से जुड़े नियमों में बार-बार बदलाव को लेकर आलोचना झेल रहा था।
आचार्य रिजर्व बैंक में मौद्रिक और शोध इकाई को देख रहे थे। स्वतंत्र विचार रखने वाले अर्थशास्त्री आचार्य कई मौकों पर सरकार और वित्त विभाग की आलोचना तथा केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाकर विवादों में रहे।
पिछले साल अक्टूबर में ए.डी. श्रॉफ स्मृति व्याख्यानमाला में उन्होंने कहा था कि सरकार की निर्णय लेने के पीछे की सोच सीमित दायरे वाली है और यह राजनीतिक सोच-विचार पर आधारित होती है। इस व्याख्यान से आरबीआई और सरकार के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। स्वयं को एक बार गरीबों का 'रघुराम राजन' कहने वाले आचार्य ने यह भी कहा था कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता को यदि कमजोर किया गया तो इसके घातक परिणाम हो सकते हैं।
रिजर्व बैंक में पिछले ढाई साल से काफी उथल-पुथल देखने को मिली। इसकी शुरुआत नीति निर्माण में परिवर्तन के साथ हुई थी, जहां नीतिगत दर तय करने का काम 6 सदस्यीय समिति (मौद्रिक नीति समिति) को दे दिया गया। विशेषज्ञों ने इसे सही दिशा में उठाया गया कदम बताया था। इसके बाद पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अचानक इस्तीफा दे दिया। पटेल के इस्तीफा के बाद से ही आचार्य के पद छोड़ने की भी अटकलें लगनी तेज हो गई थीं। (भाषा)