पत्तों की कसम, झूठ नहीं बोलूंगा...

धार्मिक ग्रंथ पर हाथ रखकर झूठी कसम खाने के भी कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे परन्तु आदिवासी समुदाय को साज के पत्तों और अन्य पेड़ों पर हाथ रखकर कसम खिलाई जाए तो वे हरगिज झूठ नहीं बोल सकते।

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आदिवासी समाज में गोत्रों के नाम पेड़-पौधों और वन्य प्राणियों के आधार पर रखे जाते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि वनों में रहने के चलते पेड़ों एवं वन्य प्राणियों से इनका गहरा जुड़ाव रहा है। आदिवासी समाज में सबसे अधिक महत्व साज के वृक्ष का होता है। वे अपने आराध्य बूढ़ादेव की पूजा के समय साज के पत्तों की कसम खिलाई जाए तो वह झूठ बोल नहीं सकता है, भले ही सच बोलने पर उसकी जान ही क्यों न चली जाए।

आदिवासी समाज के पुजारी का कहना है कि आदिवासी समुदाय का प्रकृति एवं पर्यावरण प्रेम पत्तों से पूरा नहीं होता है। वे अपने कुल देवी-देवताओं को पेड़ों में होना मानते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी पेड़ों की पूजा-अर्चना कर उनका संरक्षण संवर्धन किया जाता है। किस पेड़ में कौनसे भगवान का वास है... आगे पढ़ें...

बूढ़ादेव और लिंगोपेन देव साजा, अमलतास एवं करंज के पेड़ों में वास होना मानते हैं। वनों को देवता तुल्य मानने वाली आदिवासी वनों में निवास करना, वन प्रांतों में खेती, वनोपज संग्रहण को अपना गौरव मानते हैं।

आदिवासी समाज मे बीजापंडुम एवं तीज-त्योहारों में वन देवताओं की पूजा की जाती है। बुजुर्ग पुजारी की मान्यता है कि फिरती माता, बरगदीतला माता, पीपल और गूलर में मावली माता, साज में भैरमदेव का वास, साल, महुआ, आम में मां दुर्गा और मां दंतेश्वरी का वास महुआ एवं बरगद में होता है। नीम पेड़ को श्रेष्ठतम माना जाता है। नीम व बरगद के पेड़ों में आदिवासी समुदाय द्वारा विवाह की रस्में सम्पन्न कराने की परंपरा आज भी कायम है।

पेडों के शरण स्थल की पांच एकड़ तक परिधि में देव का वास होता है। जामुन वृक्ष की टहनी के संकेत से बताए गए स्थल में नलकूप में कामयाब होना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हैरत बताया जाता है, परंतु यह प्रमाणित है। नीम, महुआ, बरगद, आम, पीपल, नींबू, अमरूद, कुल्लू, मुनगा, केला, ताड़ी, सल्फी गुलरबेल एवं कुल 16 प्रकार के पेड़ों को भगवान माना जाता है और इनकी पूजा की जाती है। इसके अलावा सौ प्रकार से ज्यादा वृक्ष 28 प्रकार की लताएं 47 प्रकार की झाड़ियां नौ प्रकार के बांस फर्न को पूजा जाता है। (वार्ता)

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