मुझे नहीं पता कि आदर्श पिता की परिभाषा क्या होनी चाहिए? किसी के पिता नरम स्वभाव के होते हैं तो किसी के सख्त। लेकिन फिर भी हर एक बच्चे के लिए उसके पिता आदर्श ही होते हैं। माताओं को तो बहुत महत्व दिया जाता है। लेकिन वे इंसान जो बच्चों के साथ मां की तरह दिन-रात समय नहीं बिता पाते, खुद को अपने बच्चों के सामने अभिव्यक्ति करने में कहीं पीछे छुट जाते हैं, वे हैं पिता।
कुछ बच्चे अपने पिता की घर-परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को देखकर उनके प्रेम का अंदाजा लगा लेते हैं, वहीं कुछ को बढ़ती उम्र के साथ अपने पिता का प्रेम समझ में आने लगता है। पिता ही वह है जिन्हें कभी मां की तरह अहमियत नहीं मिलती, जिनका अपने बच्चों के प्रति प्रेम का कभी जिक्र नहीं किया जाता और न ही वे खुद कभी यह जाहिर होने देते हैं कि वे आपकी कितनी परवाह करते हैं।
घर के खर्च, आपके स्कूल, कॉलेज, ट्यूशन, कपड़े, बाइक और अन्य शौक को पूरा करने के लिए वे दिन-रात एक कर देते हैं और हमें कभी महसूस तक नहीं होने देते कि इतनी मेहनत हमें एक एजुकेटेड, संस्कारी व गुणी इंसान बनाने के लिए की जा रही है। अपने शौक और इच्छाओं के लिए तो लिए तो उन्हें सोचने का समय ही नहीं मिलता है। उनकी सारी मेहनत तो केवल इसलिए होती है कि हमें आगे जाकर अपने जीवन में वे सभी संघर्ष न करने पड़ें जिनसे उन्हें होकर गुजरना पड़ा है। हमारे साधारण से दिखने वाले पिता हमारा जीवन आसान बनाने के लिए कई असाधारण परिस्थितयों से होकर गुजरते हैं।
माएं तो फिर भी कई बार घर व अन्य काम की अधिकता से चिड़चिड़ाते हुए हम पर एक बार अपना गुस्सा उतार देती हैं लेकिन वे पिता ही हैं, जो घर लौटने पर पूरा दिन कितना भी बुरा क्यों न बीता हो, कभी हमें पता ही नहीं चलने देते हैं। वे सारे दु:ख, परेशानियां, किसी बात की अनिश्चितता, चिंता आदि सबकुछ अपने में समाए हुए रहते हैं।
जब तक हम उनके साए में होते हैं, हमें जीवन की कोई कठिनाई छू नहीं पाती है। एक दौर ऐसा भी आता, जब हमें उनके कोई भी सुझाव सही नहीं लगते और हमें अपने मन की करने की आजादी चाहिए होती है। पिता हमें गलत निर्णय लेने से रोकते हैं लेकिन उस उम्र में हमें अपने आपसे सही और कुछ नहीं लगता।