सास हो या बॉस, मालिक नहीं केयर टेकर की भूमिका निभाएं, तभी करेंगे सबके दिलों पर राज

किसी परिवार का मुखिया भले ही पुरुष हो, सास, जेठानी या मां ही घर का प्रबंधन देखती है। बाहर की दुनिया में भी स्त्री हो या पुरुष आजकल संस्था प्रमुख या बॉस की भूमिका में होते हैं। सत्ता चाहे घर की हो या ऑफिस की, जाने अनजाने अहम को जन्म देती है। फिर अहंकार से भरे व्यक्ति को न तो स्वयं के निर्णय कभी गलत लगते हैं न ही अपनी गलती का एहसास होता है।

ऐसे में तानाशाही का वातावरण उत्पन्न होता है जो तनाव को जन्म देता है। डर का माहौल कार्यक्षमता को घटाता है व सही बात रखने की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न होने से सभी में कुंठा का जन्म होता है। घर हो या कार्यस्थल, उबाऊ बन जाता है व समय गुजारना एक सजा। तब परिवार टूटने बिखरने लगते हैं व कार्यस्थल एक बोझ लगता है जहां से समय खत्म होते ही भागने की प्रवृत्ति जन्म लेती है। अतः परिवार हो या संस्था मुखिया को मालिक नहीं माली की भूमिका निभाने की मानसिकता निभानी चाहिए व यही उत्कृष्ट प्रबंधन का, मजबूत प्रबंधन का आधार है।
 
मालिक अर्थात शासक जो शासन करना जानता है, अपने अधिकारों के दम पर अपनी मर्जीनुसार निर्णय लेकर उन्हें सभी पर थोपता है। उनके क्रियान्वयन में आने वाली व्यावहारिक समस्याओं को न तो सुनना पसंद करता है न ही उन्हें समझना चाहता है। अपने विचारों में कभी लचीलापन नहीं रखता न ही उदार मन से सबके हित में, सबको फायदा पहुंचाकर, सभी को जायज सुविधा दे सब पर हुकूमत चलाने का अहंकार छोड़, दिलों पर राज करने की मानसिकता विकसित करता है।

 
माली अर्थात रखवाला या केयर टेकर बनने की मानसिकता हो, तो अपनत्व जागृत रखकर हर व्यक्ति की प्रतिभा को पहचान, उसकी खामियों को नजरअंदाज कर, उसमें उत्साह व आत्मविश्वास जगा, उससे खुशी-खुशी परिवार व संस्था के हित में समर्पण भाव से कार्यरत रहने की प्रेरणा भी मुखिया ही जागृत रख सकता है व यही उसकी सच्ची सफलता होगी।
 
प्रबंधन अत्यंत जटिल साथ ही नाजुक मुद्दा है। घर हो या संस्था अपनत्व, प्रेम व आत्मीयता से सबको खुश व समर्पित हो कार्य करने का माहौल बनाना ही प्रबंधक का मूल कर्तव्य है। इसी में उसने महारत हासिल कर ली तो सबकुछ आसान हो जाता है।


इसीलिए माली जैसे अपने हर पौधे का ध्यान रखता है, उसकी जरूरत अनुसार खाद, पानी, प्रकाश की व्यवस्था करता है, उस पर आने वाली फूलों की बहार से आत्ममुग्ध हो खुश होता है, पौधे को सहला उसकी प्रशंसा करता है, उसकी सड़ी गली पत्तियों व सूखी टहनियों को चुपचाप काट छांट कर पौधों को सुंदर बनाए रखता है व किसी दूसरे पौधे के फूलों के रंग रूप व सुंदरता से तुलना किए बिना हर पौधे को अपने बगीचे का अहम हिस्सा मानता है व अपनी ओर से हर पौधे का बराबरी से ध्यान रखता है। वही भूमिका सास हो या बॉस, माता-पिता हो या प्रमुख या मुखिया, किसी भी रूप में निभाने से ही परिवार या संस्था रूपी बाग में बहार आती है। 
 
कुछ व्यवहार की विशेषताएं जो सभी प्रबंधकों से अपेक्षित हैं -
 
1. अहंकार से दूर रहें - पद अवश्य आपको अपनी काबिलियत से मिला है पर इस पर सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए आपके अधीनस्थों का ही योगदान है, इस बात को न भूलें।
 
2. काम करने वालों का महत्व समझें - हर परिवार में, संस्था में कुछ लोग समर्पण भाव से पूरी ईमानदारी व निष्ठा से सतत कार्य करते हैं, उनकी अहमियत सदा समझें।

 
3. अपमानित न करें - गलती काम करने वालों से ही होती है। उदारता से गलतियों को नजरअंदाज करें न कि उसका उलाहना दें अपमानित करने का प्रयास।
 
4. अपनत्व व आत्मीयता बनाएं - मुखिया के रूप में इतनी आत्मीयता रखें कि बड़ी सरलता से लोग आपकी सलाह मांगे व अपनी बात आपसे कहने में उन्हें झिझक जाने या अपमानित होने का डर न हो।
 
5. समस्याएं सुलझाएं - हर कार्य को करते समय कुछ न कुछ अड़चने, समस्याएं, कैसे करना है की जिज्ञासा होती है। उनसे चिढ़ने की बजाए सरलता व सहजता से उनका व्यावहारिक हल बताएं। आप पद पर हैं इसलिए आपसे उन्हें सुलझाने की अपेक्षा होती है।
 
 
6. लाभ देने, फायदा पहुंचाने की मानसिकता रखें - मुखिया होने के नाते बहुत सी बातों में आपकी सकारात्मक सोच से परिवार जनों या अधीनस्थों को लाभ या फायदा मिल सकता है। जहां तक हो सके, बिना एहसान जताए सबकी मदद करें व फायदा पहुंचाएं जिससे आपका कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं होगा पर आपकी यह अच्छाई एहसास बनकर सबको खुशी देगी।
 
7. पारदर्शिता रखें - आप जो भी निर्णय लें उनमें पारदर्शिता हो तो आपस में मनमुटाव नहीं होगा फिर अपने निर्णयों का औचित्य समझाना भी आपकी उदार मानसिकता का ही पर्याय होगा।

 
8. निर्णय बदलना भी पड़े तो सहज रहें - कभी-कभी इंसान होने के नाते आपके कुछ निर्णय गलत भी हो सकते हैं, कोई उन पर प्रश्नचिन्ह भी लगा सकता है। इसे सरलता व सहजता से स्वीकारें व निर्णय बदलने का वक्त आए तो भी अहं का मुद्दा न बनाएं।
 
9. प्रतिशोध लेना छोड़ें - प्रमुख होने के नाते आपका सम्मान रखा जाना चाहिए पर कोई सही बात साहस से कह दें या आपको लगे कि वह आपके विचारों से सहमत नहीं है, तब भी गांठ बांध प्रतिशोध लेने व उसे अपमानित करने का प्रयत्न आपकी ही गरिमा को ठेस पहुंचाएगा।

 
10. माफ करना सीखें - बड़े होने के नाते बड़ी उदारता से माफ करना सीखेंगे तो विरोधी भी आपके प्रशंसक बन जाएंगे।
 
11. चापलूसों से बचें - हर जगह इस तरह के लोग होते हैं जो डर से या फायदा मिलने की चाहत में आपकी हां में हां मिलाएंगे व चापलूसी से आपकी नीतियों की मुंह पर सदा सराहना करेंगे, ऐसे लोगों से बचकर रहें।
 
12. सच सुनने का साहस रखें - बड़े या मुखिया होने का मतलब कदापि नहीं कि आप ही सदा सही हो, ऐसे में कोई कितना भी बड़ा कड़वा सच आपके बारे में कहे उसे सहृदयता से स्वीकारें व आत्ममंथन करें।

 
13. क्षमता को पहचाने - हर व्यक्ति की क्षमताएं अलग-अलग होती हैं। रूचि व कार्य करने का अपना तरीका होता है उसे प्यार से समझा उसका उत्साह बढ़ा उसकी मदद कर अपने तरीके से काम करवाएं।
 
14. भेदभाव न करें - भेदभाव, बैर व वैमनस्य को जन्म देता है। अतः जहां तक हो परिवार हो या संस्था कोशिश करें कि सबके साथ समान व्यवहार हो, सभी के लिए नियम समान हो।

 
15. तनावरहित प्रसन्नता पूर्ण माहौल बनाएं - परिवार या संस्था में आपकी उपस्थिति या आगमन तनाव का नहीं प्रसन्नता का माहौल बना सके यही आपकी सही जीत होगी।
 
इस प्रकार मानव मन की भावनाओं की कद्र करके, सबकी सुनकर, सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देकर, सबका आत्मसम्मान बनाए रखकर, सराहना कर, सबके दिलों पर राज किया जा सकता है। 
 
परिवार हो या संस्था, मुखिया को स्वयं सुविधाएं लेने से पहले अपने घर या संस्था सदस्यों की सुख सुविधाओं का ध्यान रखें और उनके हितों को सर्वोपरि समझते हुए उन्हें विश्वास में लेते हुए हर कार्य किया जाए तो प्रबंधक के लिए सम्मान व अपनत्व बढ़ेगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से नई सोच जन्म लेने के अवसर बढ़ेंगे व आत्मीयता से प्रसन्नता पूर्ण तनावरहित वातावरण के निर्मित होने से घर व कार्यस्थल पर काम सहजता से होंगे। 
 
अतः प्रबंधक हैं, संस्था प्रमुख हैं या परिवार के मुखिया अर्थात सास हो या बॉस, तानाशाह बन मालिक बनने की बजाए माली बनकर सोचिए आपके परिवार या संस्था की बाग सदा मुस्कुराएगी व आपसे लोग डरेंगे नहीं प्यार करेंगे, आदर करेंगे जो सदा चिरस्थायी होगा।

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