गंगा दशहरे से जुड़ी प्रचलित पौराणिक मान्यताएं

प्रीति सोनी 
 
अपनी पवित्रता के लिए पूजी जाने वाली मां गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थी इसीलिए इस दिन को गंगा दशहरे के रूप में मनाया जाता है। अर्थात स्वर्ग से धरती पर गंगा के आने का पर्व है गंगा दशहरा। मां गंगा को संपूर्ण विश्व में सबसे पवित्र नदी माना जाता है।


जब गंगा धरती पर आई, तब यहां की बंजर धरती उपजाऊ हुई और हर क्षेत्र में हरियाली छा गई, तभी से यह गंगा दशहरा पर्व मनाने की शुरूआत हुई। 
 
वराह पुराण के अनुसार मां गंगे 10 पापों को नष्ट करती है इसीलिए इसे दशहरा करते हैं। 
 
गंगा दशहरे को लेकर हिंदू धर्म व समाज में कुछ मान्याताएं जुडी हुई है-

1  गंगा दशहरे के दिन गंगा तटों एवं घाट पर बड़े-बड़े मेले लगते हैं और लाखों श्रद्धालु यहां आकर गंगा नदी के पवित्र जल में स्नान कर मां का पूजन अर्चन करते हैं। 


 

 
2  शाम के समय दीपदान कर मां गंगा की आरती की जाती है। 

3  इस दिन गंगाजी अथवा अन्य किसी पवित्र नदी पर सपरिवार स्नान करना सर्वश्रेष्ठ होता है।  यदि संभव न हो तब घर पर ही गंगाजली को सम्मुख रखकर गंगाजी की पूजा-आराधना कर ली जाती है।

4 स्कंद पुराण के अनुसार इस दिन स्नान, दान और पूजन का विशेष महत्व होता है। गर्मी का मौसम होने के कारण श्रद्धालु इस दिन छतरी, वस्त्र, जूते-चप्पल दान करते हैं।  

5   जप-तप व्रत पूजन के अलावा अनेक परिवारों में घर के दरवाजे पर पांच पत्थर रखकर पांच पीर पूजे जाते हैं, और चूरमा बनाकर साधु संत ,फकीर और ब्राह्मण को बांटा जाता है। 

6   इस दिन अनाज दान करने का भी अत्यंत महत्व है। 

7   गंगा दशहरे के दिन मौसम का प्रमुख फल आम खाने और आम दान करने का भी विशेष महत्व है। 

8  गंगा दशहरा के दिन काशी के दशाश्वमेध घाट में दस बार स्नान करके शिवलिंग का दस संख्या के गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करने से अनंत फल प्राप्त होता है।

9  इस दिन गंगा पूजन का भी विशिष्ट महत्त्व है। इस दिन विधि-विधान से गंगाजी का पूजन कर 10 सेर तिल, 10 सेर जौ और 10 सेर गेहूं 10 ब्राह्मणों को दान करना चाहिए।  

-10. मां गंगा की आराधना के लिए इस मंत्र का जाप करें- 
 
 नमो भगवत्यै दशपाप हरायै गंगायै नारयण्यै रेवत्यै,
शक्तिवायै अम़तायै विश्वस्वरूपिण्यै नंदिन्यै ते नमो नम। 
 
मां गंगा समस्त विश्व में पूजनीय है। भागीरथ की तपस्या से इनका धरती पर पर आगमन होने से इन्हें भागीरथी कहा जाता है।  इसके अलावा शास्त्रों के अनुसार एक बार ऋषि जहु ने तपस्या में विघ्‍न समझकर गंगा को पी लिया था जिसके बाद देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर उन्हें जांघ से निकाला गया, तभी से गंगा का एक नाम जान्हवी भी हो गया। 

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