हनुमानजी को कहां से मिली अपार शक्तियां, जानिए

मंगलवार, 19 मई 2015 (12:49 IST)
- श्री रामानुज 
 
'अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता'।।31।।-हनुमान चालीसा
 
कलयुग के अजर-अमर चिरंजीवियों में से एक श्रीराम भक्त हनुमान जी का जन्म दीन-दुखियों के कष्ट हरने के लिए हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी के जीवन के बारे में। शिव महापुराण के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने ही हनुमान के रूप में अवतार लिया था। हनुमानजी भगवान शिव के सबसे श्रेष्ठ अवतार माने जाते हैं। 
शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए।
 
वाल्मीकि रामायण के अनुसार बाल्यकाल में जब हनुमान सूर्यदेव को फल समझकर खाने दौड़े तो घबराकर देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर वज्र का वार किया। वज्र के प्रहार से हनुमान निश्तेज हो गए। यह देखकर वायुदेव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने समस्त संसार में वायु का प्रवाह रोक दिया। संसार में हाहाकार मच गया। तब परमपिता ब्रह्मा ने हनुमान को स्पर्श कर पुन: चैतन्य किया। उस समय सभी देवताओं ने हनुमानजी को वरदान दिए। 
 
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सूर्य ने दिया ये वरदान : इन वरदानों से ही हनुमानजी परम शक्तिशाली बन गए भगवान सूर्य ने हनुमानजी को अपने तेज का सौवां भाग देते हुए कहा कि जब इसमें शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आ जाएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं होगा। इसके अलावा बाद में भगवान सूर्यदेव ने हनुमानजी को 9 तरह की विद्याओं का ज्ञान भी दिया था।
 
हनुमानजी की दूसरी शक्ति...

धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे दण्ड से अवध्य और निरोग होगा। यमराज ने यह ‍भी कहा कि हनुमानजी कभी भी यम के प्रकोप के शिकार नहीं होंगे।
 
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कुबेर ने वरदान दिया कि इस बालक को युद्ध में कभी विषाद नहीं होगा तथा मेरी गदा संग्राम में भी इसका वध न कर सकेगी। कुबेर ने अपने अस्त्र-शस्त्र से हनुमान जी को निर्भय कर दिया।
 
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भगवान शंकर ने यह वरदान दिया कि यह मेरे और मेरे शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेगा। अर्थात किसी भी अस्त्र से न मरने का वरदान दिया।
 
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देवशिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह अवध्य रहेगा और चिंरजीवी होगा।
 
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देवराज इंद्र ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि यह बालक आज से मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा। मेरे द्वारा इसकी हनु खंडित होने के कारण इसका नाम हनुमान होगा।
 
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जलदेवता वरुण ने यह वरदान दिया कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी। अर्थात वरुणदेव ने हनुमान जी को दस लाख वर्षो तक जीवित रहने का वरदान दिया।
 
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परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्दण्डों से अवध्य होगा। युद्ध में कोई भी इसे जीत नहीं पाएगा। यह इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेगा, जहां चाहेगा जा सकेगा। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र या मंद हो जाएगी।
 
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज करते-करते रावण के महल में गए, तो वहां रावण की पत्न मंदोदरी को देखकर उन्हें माता सीता समझ बैठे और बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन बहुत सोच-विचार करने के बाद हनुमानजी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि रावण के महल में इस प्रकार आभूषणों से सुसज्जित यह स्त्री माता सीता नहीं हो सकती।
 
लंका में बहुत ढूढ़ेने के बाद भी जब माता सीता का पता नहीं चला तो हनुमानजी उन्हें मृत समझ बैठे, लेकिन फिर उन्हें भगवान श्रीराम का स्मरण हुआ और उन्होंने पुन: पूरी शक्ति से सीताजी की खोज प्रारंभ की और अशोक वाटिका में सीताजी को खोज निकाला। सीताजी ने भी हनुमानजी को वरदान दिया था। हनुमान जी को माता सीता ने अमरता का वरदान दिया है अत: वे हर युग में भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं। कलयुग में हनुमान जी की आराधना तुरंत ही शुभ फल देने वाली है।
 
हनुमान चालीसा की एक चौपाई में लिखा है- 'अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता'।।31।।
इसका अर्थ है- 'आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और 9 निधियां दे सकते हैं।
 
श्रीराम को जब हनुमानजी ने सीताजी का हाल सुनाया तो उन्होंने भावविभोर हो कर उन्हें गले लगा लिया और वरदान मांगने को कहा तब श्री हनुमान के सदा उनके पास रहने का वरदान मांगा था। इसलिए जहां भी रामायण का पाठ होता है वहां हनुमान अदृश्य रूप से जरूर उपस्थित होते हैं। 
 
लंका विजय पश्चात हनुमान जी ने प्रभु श्री राम से सदा निश्छल भक्ति की याचना की थी। प्रभु श्री राम ने उन्हें अपने हृदय से लगा कर कहा था, 'हे कपि श्रेष्ठ ऐसा ही होगा, संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक आपके शरीर में भी प्राण रहेंगे तथा आपकी कीर्ति भी अमिट रहेगी। आपने मुझ पर जो उपकार किया है, उसे मैं चुकता नहीं कर सकता।'
 
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पुराणों के अनुसार हनुमान जी को कई देवी-देवताओं से विभिन्न प्रकार के वरदान और अस्त्र-शस्त्र प्राप्त थे। इन वरदानों और शस्त्रों के कारण हनुमान जी उद्धत भाव से घूमने लगे। यहां तक कि तपस्यारत मुनियों को भी शरारत कर तंग करने लगे। उनके पिता पवनदेव और माता केसरी के कहने के बावजूद भी हनुमान जी नहीं रूके। इसी दौरान एक शरारत के बाद अंगिरा और भृगुवंश के मुनियों ने कुपित होकर श्राप दिया कि वे अपने बल को भूल जाएं और उनको बल का आभास तब ही हो जब कोई उन्हें याद दिलाए।

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