इस धूनी के बारे में वहां के लोग कहते हैं कि दादाजी इस धूनी में चने आदि डालकर, उसे हीरे-मोती (Dhuniwale Dadaji Ki Mahima) में बदल देते थे और उनका कोई भी भक्त उन्हें कितनी ही बेशकीमती चीज उपहार में दें, वे उसे भी धूनी मैया में डाल देते थे। साईखेडा में अनेक लीलाएं दिखाने के बाद दादाजी महाराज खंडवा आकर बस गए, जहां दादाजी ने धूनी माई प्रज्ज्वलित करके कई दशकों तक अनेक लीलाएं दिखाने के बाद सन् 1930 में समाधि ले ली। जहां आज भी उनकी यह बेशकीमती धरोहर लगभग 14 एकड़ में फैली हुई और विश्व प्रसिद्ध मंदिर और समाधि स्थल (Dhuniwale Dadaji) है, जो मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जा रहा है।