51 Shaktipeeth : जनस्थान भ्रामरी नासिक महाराष्ट्र शक्तिपीठ-42

अनिरुद्ध जोशी
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार जनस्थान भ्रामरी नासिक महाराष्ट्र शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
 
 
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।
 
जनस्थान- भ्रामरी : महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। यह स्थान नासिक रोड स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर दूर पंचवट क्षेत्र में स्थित है जिसे भद्रकाली शक्तिपीठ भी कहते हैं। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष।
 
'चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले।'- तंत्र चूड़ामणि
 
कहते यह भी हैं कि भद्रकाली मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहां सती का 'चिबुक' भाग गिरा था। अत: यहां चिबुक ही शक्तिरूप में प्रकट हुआ। इस मंदिर में शिखर नहीं है, सिंहासन पर नव-दुर्गाओं की मूर्तियां हैं, जिनके बीच में भद्रकाली की ऊंची मूर्ति है। इस्लामिक आक्रांताओं के कारण पहले गांव के बाहर पहाड़ी पर मूर्ति स्थापित कर दो मंजिला मंदिर बनाया परंतु उस पर कलश स्थापित नहीं किया ताकि कोई यह नहीं जान सके कि यह मंदिर है। इसी से इस पर शिखर नहीं है।
 
भ्रामरी नाम से एक शक्तिपीठ पश्‍चिम बंगाल के त्रिस्रोता में भी स्थित है। पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्‍थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और शिव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं। भ्रामरी को मधुमक्खियों की देवी के रूप में जाना जाता है। देवी महात्म्य में उनका उल्लेख मिलता है। देवी भागवत पुराण में संपूर्ण ब्रह्मांड के जीवों के लिए उसकी महानता दिखाई गई और उनकी सर्वोच्च शक्तियों का वर्णन मिलता है।

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