वैसे तीर्थराज तो प्रयाग है लेकिन संपूर्ण भारत में महाकाल की नगरी उज्जैन को सब तीर्थों में श्रेष्ठ माना जाता है जिसके कई कारण है। पहला यह कि यहां जितने प्रमुख और महत्वपूर्ण स्थान है उतने किसी तीर्थ क्षेत्र में नहीं। आओ जानते हैं उन्हीं में से 10 प्रमुख कारणों को।
श्मशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठं तु वनमेव च,
पंचैकत्र न लभ्यते महाकाल पुरदृते। (अवन्तिका क्षेत्र माहात्म्य 1-42)
यहां पर श्मशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठ एवं वन- ये 5 विशेष संयोग एक ही स्थल पर उपलब्ध हैं। यह संयोग उज्जैन की महिमा को और भी अधिक गरिमामय बनाता है।
1. ज्योतिर्लिंग : उज्जैन स्थित महाकाल बाबा का ज्योतिर्लिंग सभी ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख है क्यों पुराणों में लिखा है कि आकाशे तारकं लिंगं, पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके च महाकालौ: लिंगत्रय नमोस्तुते।।
अर्थात:- आकाश में तारकलिंग है पाताल में हाटकेश्वरलिंग है तथा मृत्युलोक में महाकाल ज्योतिर्लिंग स्थित है। सभी 12 ज्योतिर्लिंगों को नस्कार। मतलब यह कि इस धरती पर एकमात्र महाकाल ज्योतिर्लिंग ही है जिन्हें कालों के काल महाकाल कहा जाता है। महाकाल मंदिर के सबसे उपरी तल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है। भगवान नागचन्द्रेश्वर के दर्शन वर्ष में केवल 1 ही बार, अर्थात नागपंचमी पर होते हैं। पूरे भारतवर्ष में यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां ताजी चिताभस्म से प्रात: 4 बजे भस्म आरती होती है। इस मंदिर से ही प्राचीनकाल में संपूर्ण विश्व के मानक समय का निर्धारण होता था। इसलिए भी इन्हें कालों के काल महाकाल कहा जाता है। उज्जैन के आकाश से ही काल्पनिक कर्क रेखा गुजरती है।
2. शक्तिपीठ : उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़कालिका माता का शक्तिपीठ। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। कहते हैं कि हरसिद्धि का मंदिर वहां स्थित है जहां सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी आकर गिर गई थी। अत: इस स्थल को भी शक्तिपीठ के अंतर्गत माना जाता है। इस देवी मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है।
3. काल भैरव : उज्जैन में भैरवगढ़ में साक्षात भैवरनाथ विराजमान है। यहां भैरवनाथ की मूर्ति मदिरापान करती है। ऐसा मंदिर विश्व में कोई दूसरा नहीं। कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है।
4. सिद्धों की तपोभूमि : उज्जैन कई सिद्धों और भगवानों की तपोभूमि रहा है। यहां पर गढ़कालिका क्षेत्र में गुरु गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) का सिद्ध समाधि स्थल है तो दूसरी ओर जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी ने भी उज्जैन में विहार किया था। भरथरी गुफा में विक्रमादित्य के भाई राजा भर्तृहरि ने तपस्या की थी। गुफा राजा भर्तृहरि के भतीजे गोपीचन्द की है। इस तरह उज्जैन में ऐसे कई स्थल है जहां पर ऋषियों ने तप किया था। एक श्रुतिकथा के अनुसार उज्जयिनी में अत्रि ऋषि ने तीन हज़ार साल तक घोर तपस्या की थी। अत: यह संपूर्ण नगरी ही तपोभूमि है।
5. मोक्षदायिनी क्षिपा नदी तट पर कुंभ का आयोजन : मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर स्थित पौराणिक काल के कई सिद्ध क्षेत्र हैं। कुंभ के चार स्थानों में से एक क्षिप्रा नदी ही वह स्थान है जहां अमृत कलश से एक बूंद अमृत छलक कर हां गिरा था। यही कारण है कि यहां कुंभ का आयोजन होता है। यहां के कुंभ मेरे को सिंहस्थ कहा जाता है।
इस नदी की महिमा का वर्णन वेद, पुराण और साहित्य में विस्तार से मिलता है।
6. पांच पवित्र बरगदों में से एक : उज्जैन में सिद्धवट को चार प्रमुख प्राचीन और पवित्र वटों में से एक माना जाता है। अक्षयवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट का प्रमुखता से वर्णन मिलता है। प्रयाग (इलाहाबाद) में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट जिसे बौधवट भी कहा जाता है और यहां उज्जैन में पवित्र सिद्धवट हैं। नासिक के पंचववटी क्षेत्र में सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष है जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। सिद्धवट को शक्तिभेद तीर्थ के नाम से जाना जाता है। तीर्थदीपिका में पांच वटवृक्षों का वर्णिन मिलता है। स्कंद पुराण अनुसार पार्वती माता द्वारा लगाए गए इस वट की शिव के रूप में पूजा होती है। इसी जगह पर पिंडदान तर्पण आदि किया जाता हैं। गया के बाद यह पिंडदान का प्रमुख क्षेत्र भी है।
7. श्रीराम, हनुमान और कृष्ण से जुड़े स्थल : पुराणों के अनुसार महाकाल मंदिर और गढ़कालिका की गाथा हनुमानजी से जुड़ी है। श्रुतिकथा के अनुसार रुद्रसागर नामक स्थान पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े थे। रामघाट की कथा भी इसी से जुड़ी है। तीसरा यह कि यहां अंकपात क्षेत्र में स्थित इस आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा और बलरामजी ने अपने गुरु श्री सांदीपनि ऋषि के सान्निध्य में रहकर गुरुकुल परंपरानुसार विद्याध्ययन कर 14 विद्याएं तथा 64 कलाएं सीखी थीं। यहां श्रीकृष्ण 64 दिन रहे थे और यहां के वन क्षेत्रों से लकड़ियां एकत्रित करने जाते थे। शिक्षा पूर्ण करने के बाद वे अपने गुरु के पुत्र की खोज में चले गए थे और बाद में पुन: गुरु के पुत्र को लेकर उज्जैन पधारे थे।
8. श्री मंगलनाथ मंदिर : मत्स्य पुराण में मंगल ग्रह को भूमि-पुत्र कहा गया है। पौराणिक मान्यता भी यही है कि मंगल ग्रह की जन्मभूमि भी यहीं है। मंगल ग्रह की शांति, शिव कृपा, ऋणमुक्ति तथा धन प्राप्ति हेतु श्री मंगलनाथजी की प्राय: उपासना की जाती है। यहां पर भात-पूजा तथा रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है। ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान के दृष्टिकोण से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
9. नगरकोट की रानी : नगरकोट की रानी प्राचीन उज्जयिनी के दक्षिण-पश्चिम कोने की सुरक्षा देवी है। राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि की अनेक कथाएं इस स्थान से जुड़ी हुई हैं। यह स्थान नाथ संप्रदाय की परंपरा से जुड़ा है। यह स्थान नगर के प्राचीन कच्चे परकोटे पर स्थित है इसलिए इसे नगरकोट की रानी कहा कहा जाता है।
10. चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य की नगरी : भारत में चक्रवर्ती सम्राट उसे कहा जाता है जिसका की संपूर्ण भारत ही नहीं विश्व के अन्य कई क्षेत्रों में राज रहा हो। विक्रम वेताल और सिंहासन बत्तीसी की कहानियां महान सम्राट विक्रमादित्य से ही जुड़ी हुई है। विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज (2020) से 2291 वर्ष पूर्व हुए थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)।
यहां पर विक्रमादित्य के बाद किसी भी राजा को राज करने के अधिकार तभी प्राप्त होता है जबकि वह राजा विक्रमादित्य की तरह पराक्रमी और न्यायप्रिय हो। कुछ लोग मानते हैं कि यही कारण था कि राजा भोज को अपनी राजधानी धार और भोपाल में बनाना पड़ी थी। कहते हैं कि अवंतिका अर्थात उज्जैन के एक ही राजा है और वह है महाकाल बाबा। कोई भी राजा यहां रात नहीं रुक सकता। उनके रुकने के लिए उज्जैन से बाहर एक अलग स्थान नियुक्त है। किवदंति है कि जो भी राजा यहां रात रुकता है और यदि वह सत्यवादी नहीं है तो उसके जीवन में संकट प्रारंभ हो जाते हैं।