जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास और महत्व

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021 (11:01 IST)
वैष्णो देवी का विश्व प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में कटरा नगर के समीप की पहाड़ियों पर स्थित है। इन पहाड़ियों को त्रिकुटा पहाड़ी कहते हैं। यहीं पर लगभग 5,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है मातारानी का मंदिर। आओ जानते हैं मंदिर का इतिहास और महत्व।
 
 
गुफा मंदिर इतिहास :
1. भूवैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार माता वैष्णो देवी का गुफा मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रेतायुग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए एक सुंदर राजकुमारी के रूप में अवतार लिया था और त्रिकुटा पर्वत पर गुफा में तपस्या की थी। जब समय आया, उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं के सूक्ष्म रूप में विलीन हो गया- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती।
 
 
2. मंदिर की संक्षिप्त कथा : वैष्णोदेवी कथा को वैष्णो देवी के भक्त श्रीधर से जोड़कर भी देखा जाता है। 700 वर्ष से भी अधिक समय पहले कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान और गरीब थे। लेकिन वे सोचा करते थे कि एक दिन वे माता का भंडारा रखेंगे। एक दिन श्रीधर ने आस-पास के सभी गांव वालों को प्रसाद ग्रहण करने का न्योता दिया और भंडारे वाले दिन श्रीधर अनुरोध करते हुए सभी के घर बारी-बारी गए ताकि उन्हें खाना बनाने की सामग्री मिले और वह खाना बनाकर मेहमानों को भंडारे वाले दिन खिला सके। जितने लोगों ने उनकी मदद की वह काफी नहीं थी क्योंकि मेहमान बहुत ज्यादा थे।
 
 
वह सोच रहे थे इतने कम सामान के साथ भंडारा कैसे होगा। भंडारे के एक दिन पहले श्रीधर एक पल के लिए भी सो नहीं पा रहे थे यह सोचकर की वह मेहमानों को भोजन कैसे करा सकेंगे। वह सुबह तक समस्याओं से घिरे हुए थे और बस उसे अब देवी मां से ही आस थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर पूजा के लिए बैठ गए, दोपहर तक मेहमान आना शुरू हो गए थे, श्रीधर को पूजा करते देख वे जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। सभी लोग श्रीधर की छोटी-सी कुटिया में आसानी से बैठ गए।
 
 
श्रीधर ने अपनी आंखें खोली और सोचा की इन सभी को भोजन कैसे कराएंगे, तब उसने एक छोटी लड़की को झोपडी से बाहर आते हुए देखा जिसका नाम वैष्णवी था। वह भगवान की कृपा से आई थी, वह सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी। भंडारे में भैरवनाथ भी आकर बैठ गए थे जो कन्या को आलौकिक शक्ति जानकर उन्हें अपने वश में करना चाहते थे। माता जब उन्हें भोजन परोसने लगी तो वे बोले मैं ये नहीं खाता मुझे मांस चाहिए। वहां पर माता की रक्षार्थ ब्राह्मण रूप में हनुमानजी भी मौजूद थे। माता ने भैरवनाथ के मन की इच्छा जान ली और वह वहां से गायब होकर त्रिकूट पर्वत पर एक गुफा में चली गई। भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे। 
 
बाद में गुफा के बाहर हनुमानजी और भैरवनाथ में युद्ध हुआ और अंत में 9 माह बाद जब माता तपस्या करके गुफा के बाहर निकली तो उन्होंने काली रूप धारण करके भैरवनाथ का सिर काट दिया। 
 
उसी पहाड़ी पर श्रीधर अपने परिवार के साथ पहुंचकर माता की तपस्या करने लगे। माता ने प्रकट होकर नि:संतान श्रीधर को चार संतान होने का आशीर्वाद दिया और गुफा के बारे में बताया। श्रीधर एक बार फिर खुश हो गए और मां की गुफा की तलाश में निकल पड़े और कुछ दिनों बाद उन्हें वह गुफा मिल गई। तभी से वहां पर माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु जाने लगे।
 
 
मंदिर परिचय : त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की स्वयंभू तीन मूर्तियां हैं। देवी काली (दाएं), सरस्वती (बाएं) और लक्ष्मी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों पिण्डियों के सम्मि‍लित रूप को वैष्णो देवी माता कहा जाता है। इस स्थान को माता का भवन कहा जाता है। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फीट है। इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा बना हुआ है। इस चबूतरे पर माता का आसन है जहां देवी त्रिकुटा अपनी माताओं के साथ विराजमान रहती हैं।
 
 
इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वांरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वांरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कटरा में बान गंगा नदी है। कहते हैं कि माता ने अपने दिव्य धनुष से एक तीर चलाया था, जिसके चलते यह नदी निर्मित हुई। 
 
भवन वह स्थान है जहां माता ने भैरवनाथ का वध किया था। प्राचीन गुफा के समक्ष भैरो का शरीर मौजूद है और उसका सिर उड़कर तीन किलोमीटर दूर भैरो घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया। जिस स्थान पर सिर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कटरा से ही वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है जो भवन तक करीब 13 किलोमीटर और भैरो मंदिर तक 14.5 किलोमीटर है।
 
 
महत्व : यह मंदिर माता वैष्णवी का जागृत स्थान है। कहते हैं कि यहां जो भी आता है खाली हाथ नहीं जाता है। भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ स्थल है। ऐसा माना जाता है जब तक माता नहीं चाहती तब तक उनके दर्शन कोई नहीं कर सकता है। माता के बुलावे को उनका आशीर्वाद माना जाता है। माता के दर्शन करने की यात्रा लगभग 24 किलोमीटर लंबी हैं, जो कि एक कठिन यात्रा मानी जाती है।

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