तुम्हारे लबों पर मेरा नाम

तुम्हारे लबों पर जब आया मेरा नाम 
बेइंतहा खूबसूरत हो गया, 
फिर जब
तुमने पुकारा मुझे 
तो मुझे खुद से प्यार हो गया,  
तुमने छुआ था 
बस अंगुलियों को 
और संदली हो गई 
मेरी देह-गंध, 
तुम्हारी आंखों से 
झरा था 
शायद वह प्रेम-रस था 

 
मैं दूर बैठी पर, 
मेरे मन की कोमल क्यारियां 
भीग गई थी,
तुमने चांद-रात में 
जो फुसफुसाया था 
कुमुदनी बन वह 
मेरे पोर-पोर में खिल आया था 
तुम अब 
फिर से पुकारों मेरा नाम, 
लबों पर रखो उसे कुछ देर 
मैं आज 
खुद से प्यार करना चाहती हूं। 
एक चंदन-सा अहसास 
फिर जीना चाहती हूं। 

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