ये मुझे क्या हो गया

विजय कुमार सप्पत्ती

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किसी अनजाने से तेरे बारे में बात करना
और जब वो कहे ‍कि ये जानां कौन है यार...

किसी सुबह अपने बगल में तेरा चेहरा ढूँढना
और फिर हँसना कि मैं पागल हो गया हूँ...

किसी शाम को उतरते हुए सूरज से ये कहना कि,
तेरे चेहरे पर मेरे नाम की किरण बिखराए...

किसी रात को अचानक उठ कर बैठना,
और तेरी तस्वीर से ढेर सारी बात करना

किसी शहर में किसी गली में मुड़ते समय,
अपना हाथ तेरे लिए, तुझे थामने के लिए बढ़ाना ...

अचानक ही अपने कमरे में तुझे देखना,
और मुस्कुराना और ढेरों बातें करना ...

मेरे होंठों पर तेरे लबों का स्वाद ढूँढना
फिर तेरे होंठों को हवाओं में ढूँढना

हवाओं पर उँगलियों से... पानी पर उँ‍गलियों से ...
और पेड़ों पर भी अपनी उँगलियों से तेरा नाम लिखना

अकेले होते हुए भी अकेले नहीं होना
तेर संग बस प्यार करना और सिर्फ प्यार करना

पहली नजर का पहला जादू
अब तक तुम्हें देख रहा हूँ
ये मुझे क्या हो गया ...

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