ये कहने को बस ज़िंदगी है हमारी मगर एक पल भी हमारा नहीं है ऐ मंज़िल तू ख़ुद क्यूँ क़रीब आ रही है ...
अब तेरे-मेरे बीच जरा फासिला भी हो हम लोग जब मिलें, तो कोई दूसरा भी हो
बहुत प्यार करना चाहता हूँ तुम्हें जैसे बादल बरसते हैं धरती पर मैं क्यों नहीं कर पाता तुम्हें इतन
देखो तो अब कितना ताजा दम हूँ देखो तो चमत्कार अपने स्पर्श का देखो तो यह जीवन आँच भरी थी जो शब्दों ...
मेरे गालों पर तलाशती थी आँसुओं की सूखी लकीरें मेरे दिल पर हाथ रख महसूसना चाहती थी धड़कनें जिनमें म
न चाहते हुए भी छूट ही गए शहर दोस्त और उम्र के हसीन पल अब मुझे चलना होगा तुम्हें भी छोड़कर तुम्हारे ...
ये रात है और अकेलापन तारे टिमटिमाते हैं और मेरे अकेलेपन को और अकेला करते हैं प्यार के पल कितने कम ह

मोहब्बत का जादू

बुधवार, 2 दिसंबर 2009
मैंने तुम्हें फूल देना चाहा, पर देखा... तो, सारे फूल पिघल गए थे... आसमां से गिरते हुए आग में जल गए थ

तुम्हारी शादी

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

तुम हो तो

गुरुवार, 26 नवंबर 2009
लिखी जा नहीं सकेगी कभी तुम्हारे बिना तृप्ति के बाद की शांति धमनियों-शिराओं में बहती नि:शब्द नीरव

तेरे इश्क पर मुझे रश्क है

गुरुवार, 26 नवंबर 2009
मैं भी किसी का ख्याल बनूँ तो मैं भी किसी का इमरोज़ बन जाऊँ, मेरे यार! तेरे इश्क पर मुझे रश्क है ; म
आओ इश्क की बातें कर लें, आओ खुदा की इबादत कर लें, तुम मुझे ले चलो कहीं पर, जहाँ हम खामोशी से बातें क
तुम्हें याद है, जिस जन्म; हम जुदा हुए थे! उस पल में, हमने एक दूजे की आँखों में एक उम्र डाल दी थी..
मैं तेरा तो नहीं हो गया काम का तो नहीं हो गया तुझको पूजा अलग बात है तू खुदा तो नहीं हो गया रहज...
आपका साथ अगर नहीं होता खूबसूरत सफर नहीं होता सिर्फ हैवानियत ही रह जाती जज़्ब-ए-इश्क़ अगर नहीं होत...