Russia Ukraine War : बिस्किट, तेल से लेकर सीमेंट तक सब महंगे, इन सेक्टर पर पड़ेगी युद्ध की तगड़ी मार

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022 (12:30 IST)
नई दिल्ली। यूक्रेन के खिलाफ रूस के सैन्य अभियान से घरेलू अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए सरकारी अधिकारी पूरी तरह से जुट गए हैं। तेल की कीमतों में वृद्धि और देश के बाहरी व्यापार के प्रभावित होने के कारण मुद्रास्फीति में संभावित वृद्धि से निपटने के लिए पहले से योजनाओं को तैयार करना शुरू कर दिया है। 
 
गेहूं और मक्का महंगा : रूस और यूक्रेन दोनों ही गेहूं के बड़े निर्यातक है। दोनों देश दुनिया भर में 29 प्रतिशत गेहूं निर्यात करते हैं। यहां से करीब 19 प्रतिशत मक्का का भी निर्यात होता है। दोनों देशों के बीच युद्ध की वजह से गेहूं 12 प्रतिशत और मक्का 4 प्रतिशत महंगा हो चुका है।  
 
बढ़ेगी व्यापार लागत : उद्योग जगत ने कहा कि रूस-यूक्रेन संकट से कच्चे तेल और जिंसों की कीमतों में तेजी आ सकती है। इससे उनकी कच्चे माल की लागत बढ़ेगी और फलत: मुद्रास्फीतिक दबाव बढ़ेगा। बिस्कुट, चॉकलेट जैसे खाने का सामान बनाने वाली पारले प्रोडक्ट्स ने कहा कि भू-राजनीतिक स्थिति का कच्चे तेल की कीमतों पर काफी असर पड़ने वाला है और इससे व्यापार लागत बढ़ना तय है। इसका असर कई उद्योगों पर पड़ेगा।
 
उषा इंटरनेशनल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) दिनेश छाबड़ा ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में उछाल और यूरोप में मंदी की आशंका से आयात लागत बढ़ सकती है। यूक्रेन तांबे जैसे खनिजों का एक प्रमुख स्रोत है, इसके परिणामस्वरूप इन खनिजों की कमी भी हो सकती है, जिससे खनिज लागत बढ़ सकती है।
 
महंगा होगा ये सामान : फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय सहाय के अनुसार, रूस, यूक्रेन और अन्य यूरोपीय देशों में माल की आवाजाही स्वेज नहर और काला सागर के रास्ते होती है। व्यापार पर इसका कितना प्रभाव पड़ेगा यह युद्ध की अवधि पर निर्भर करेगा। रूस से भारत में ईंधन, खनिज तेल, मोती, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और उपकरण का आयात होता है।  
 
बढ़ेंगे सीमेंट के दाम : रूस और यूक्रेन के बीच जारी संकट के कारण सीमेंट जैसे कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है और इसके साथ ही आने वाले महीनों में घरों के दाम बढ़ सकते हैं। क्रेडाई के अध्यक्ष हर्षवर्धन पटोदिया ने कहा कि इससे भारत के सीमेंट निर्माता और अधिक प्रभावित होंगे, जो पहले से ही कच्चे माल और ऊर्जा की लागत में वृद्धि के दबाव में थे।

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