आत्मा-महत्-अंधकार-अकाश-वायु-अग्नि-जल-धरती
विस्तार से ऐसे समझे :
ब्रह्मा की इच्छा से त्रिगुण युक्त प्रधान पुरुष का जन्म हुआ। उससे महत् तत्व उत्पन्न हुआ। सृजन की इच्छा से प्रेरित होकर अव्यय अव्यता में प्रवेश करके यह आत्मा से अधिष्ठित हो गया। इससे प्रकट सृष्टि को एक रूप (आकार) मिला। तत्पश्चात् महत् से संकल्प वृत्ति, सात्विक अहंकार उत्पन्न हुआ। फिर त्रिगुण रजोधिक अहंकार का जन्म हुआ। फिर रजोगुण से आवृत्त तामसा अहंकार का जन्म हुआ। अहंकार से भूत तन्मात्राएं और उससे अव्यय आकाश उत्पन्न हुआ। तन्मात्राओं से हो का सर्ग हुआ। फिर आकाश से स्पर्श, स्पर्श से वायु, वायु से रूप, रूप से अग्नि, अग्नि से रस, और रस से जल, जल से गंध मात्र धरा उत्पन्न हुई।