शिव का त्रिशूल 'डोला', केदारनाथ में 'तांडव'

उत्तराखण्ड राज्य में स्थित गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री को हिंदू धर्म में सर्वाधिक पवित्र तीर्थस्थल कहा गया है।...लेकिन प्रकृति ने वहां जो विनाशा लीला रची, उससे ऐसा लगा मानो स्वयं शिव अपने 'तांडव रूप' में आ गए हों।
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मान्यता है कि समूचा काशी क्षेत्र शिव के त्रिशूल पर बसा है। त्रिशूल हिमालय की तीन चोटियों के समूह का नाम भी है। उत्तरकाशी को प्राचीन काशी माना जाता है। एक काशी उत्तरप्रदेश में स्थित है जिसे वाराणसी भी कहा जाता है। यह काशी भी शिव के त्रिशूल पर बसी हुई है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक गुप्तकाशी स्थान भी है। गुप्‍तकाशी का वही महत्‍व है जो महत्‍व काशी का है। माना जाता है कि यहीं पर विराजमान है 'विश्‍वनाथ'।

हिमालय की पश्चिम दिशा में उत्तरकाशी जिले में स्थित 'यमनोत्री' चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। चार धाम के दर्शन एक ही यात्रा में करने के लिए श्रद्धालु पहले यमनोत्री फिर गंगोत्री उसके बाद केदारनाथ और आखिर में बद्रीनाथ जाते हैं।

केदारनाथ का मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के रुद्रप्रयाग नगर में है। यहां भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम। केदारनाथ का 6 हजार 940 मीटर ऊंचा हिमशिखर ऐसा दिखाई देता है, मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक को झांकने का यह झरोखा हो।

बद्रीनाथ धाम को जानिए...


हिमालय की तराई से गंगा के निकलने के स्थान को गंगोत्री और यमुना नदी के उद्गम को यमुनोत्री कहा जाता है। इन नदियों के मार्ग में ही हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थल पड़ते हैं। पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मपुत्र सहित यदि इन नदियों को रोकने का किसी भी प्रकार का प्रयास किया गया तो प्रलय निश्चित है। दूसरी ओर वराह, भागवत आदि पुराणों में रेवाखंड नाम के अध्‍याय में बताया गया है कि नर्मदा पाताल की नदी है और इसे रोकना अर्थात भारतवर्ष में भूकंपों को आमंत्रित करना होगा।

बहुत मेहनत और तपस्या के बाल पर हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इन नदियों को बनाया था। लेकिन, आज के राजनेताओं और धार्मिक जनता ने मिलकर इन सभी नदियों के स्वाभाविक बहाव को रोक दिया है। सभी नदियों पर जो बांध बनाए गए हैं वह तो तबाही के कारण हैं ही साथ ही इन नदियों के खात्मे के कारण भारत का जलवायु और पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है।

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केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय के पर्वर्तों की गोद में स्थित है। यह स्थान समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय पर्वत के गढ़वाल क्षेत्र में है। धार्मिक ग्रंथों अनुसार बारह ज्योतिर्लिंगों में केदार का ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचे स्थान पर है। समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां पहुंचना सबसे कठिन है।

तबाह हो गई केदारनाथ घाटी और मंदिर परिसर

मंदिर के पास से ही मन्दाकिनी नदी बहती है। मंदिर करीब 1000 वर्ष पुराना है। यहां स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। आदि शंकराचार्य ने चारों धामों की स्थापना के उपरान्त 32 वर्ष की आयु में उन्होंने इसी स्थान पर समाधि ली थी।

शंकराचार्य से पहले केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पाण्डवों ने कराया था। पौराणिक प्रमाण के अनुसार ‘केदार’ महिष अर्थात भैंसे का पिछला अंग (भाग) है। केदारनाथ मंदिर की ऊंचाई 80 फुट है, जो एक विशाल चौकोर चबूतरे पर खड़ा है।

पुराणों अनुसार भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अन्तर्धान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग कल्पेश्वर में जटाओं के रूप में प्रतिष्ठित हैं। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और केदार में बैल के धड़ के रूप में। इसलिए इन चार स्थानों सहित केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है।

केदारनाथ का मंदिर गर्मियों के दौरान केवल 6 महीने के लिए खुलता है। ठंड में इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी के कारण आस-पास का इलाका बर्फ की चादर से ढका रहता है इसलिए गर्मियों में ही यहां की यात्रा होती है। वर्षा में यहां की यात्रा करना प्राय: कठिन और जोखिमभरा ही माना जाता है।

केदारनाथ के मार्ग में यदि मृत्यु हो जाए तो, पढ़े अगले पन्ने पर...


मान्यता है कि समूचा काशी, गुप्तकाशी और उत्तरकाशी क्षेत्र शिव के त्रिशूल पर बसा है। यहीं से पाताल और यहीं से स्वर्ग जाने का मार्ग है।

शिव पुराण अनुसार मनुष्य बदरीवन की यात्रा करके नर तथा नारायण और केदारेश्वर शिव के स्वरूप का दर्शन करता है, नि:सन्देह उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। ऐसा मनुष्य जो केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में भक्ति-भावना रखता है और उनके दर्शन के लिए अपने स्थान से प्रस्थान करता है, किन्तु रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे वह केदारेश्वर का दर्शन नहीं कर पाता है, तो समझना चाहिए कि निश्चित ही उस मनुष्य की मुक्ति हो गई।

शिव पुराण अनुसार केदारतीर्थ में पहुंचकर, वहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन कर जो मनुष्य वहां का जल पी लेता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।

केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।
तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्य्या विचारणा।।
तत्वा तत्र प्रतियुक्त: केदारेशं प्रपूज्य च।
तत्रत्यमुदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विन्दति।।

स्कंद पुराण में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भूस्वर्ग के समान है।

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