ब्रह्मा के चार कुमार सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार की 11 रोचक बातें
पुराणों अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुष्ठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि। आओ जानते हैं ऋषि सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार के बारे मं संक्षिप्त में जानकारी।
सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार :
1. ब्रह्मा की उत्पत्ति जल में उत्पन्न कमल पर हुई। उन्होंने कमल के डंठल के अंदर उतरकर उसका मूल जानने का प्रयास किया लेनिक नहीं जान पाए। तब वह पुन: कमल आकर कमल पर विराजमान होकर सोचने लगे कि मैं कहां से और कैसे उत्पन्न हुआ। त
3. उन्होंने तब सर्व प्रथम चार पुत्रों की उत्पत्ति की। सनक, सनन्दन, सनातन और सनत कुमार। ब्रह्मा ने इन्हें सृष्टि रचना की आदेश दिया। परंतु ये चारों भी सृष्टि रचना छोड़कर तपस्या में लीन हो गए।
4. अपने पुत्रों की इस हरकत से जब ब्रह्मा क्रोधित हुए तो उनकी भौहों से एक बालक का जन्म हुआ। यह बालक रोने लगा तो इसका नाम रुद्र रख दिया गया। फिर ब्रह्मा ने विष्णुजी की शक्ति से 10 तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया। उनके मुख से पुत्री वाग्देवी की उत्पत्ति हुई। फिर ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो अंश किए एक अंश से पुरुषरूप मनु और दूसरे से स्त्री रूप शतरूपा को जन्म दिया। मनु और शतरुपा की संतानों को रहने के लिए श्रीहरि ने वराह रूप धारण कर धरती का उद्धार किया।
5. धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। ये भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं।
10. सनाकादि ऋषियों ने अपना प्रथम उपदेश नारदजी को दिया था।
11. पुराणों में इन चारों कुमारों के श्राप और वरदान देने के कई किस्से और कहानियां हैं। एक बार विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने इन्हें अंदर जाने से रोक दिया था जिसके चलते उन्होंने इन्हें धरती पर 3 जन्मों तक राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया था। दोनों ही भाई बाद में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के रूप में जन्में। फिर रावण और कुंभकर्ण के रूप में जन्में और अंत में शिशुपाल और दन्तवक्र के रूप में जन्म लेकर श्रीहरि के हाथों मोक्ष द्वार गए।