ज्ञात इतिहास के अनुसार प्रारंभ में दो तरह की विचारधारा के अनुसार गुरुपद पर दो ऋषि प्रमुख थे। पहले अंगिरा और दूसरे भृगु। इसके अलावा अत्रि और अगस्त्य ऋषि भी महानगुरु थे। वामदेव, शौनक, पुलह, पुलस्त्य आदि ऋषि भी हुए है जिन्होंने भिन्न काल या क्षेत्र में गुरुपद संभाला था। हालांकि भगवान शंकर के सात शिष्यों ने भी धर्म का प्रचार प्रसार कर सनातन परंपरा को स्थापित किया था।
उपरोक्त ऋषियों के बाद महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय, मतंग, वाल्मीकि, विश्वामित्र, परशुराम और दत्तात्रेय ने सनातन धर्म की परंपरा को आगे बढ़ाया। उक्त के बाद ऋषि पराशर, कृपाचार्य, सांदीपनि और वेद व्यास ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। इसके बाद आद्य शंकराचार्य के काल तक अन्य गुरु हुए जिन्होंने सनातन धर्म और संस्कृति का मार्गदर्शन किया।
ईसा पूर्व आद्य शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को व्यवस्थित करने का भरपूर प्रयास किया। उन्होंने हिंदुओं की सभी जातियों को इकट्ठा करके 'दशनामी संप्रदाय' बनाया और साधु समाज की अनादिकाल से चली आ रही धारा को पुनर्जीवित कर चार धाम की चार पीठ का गठन किया जिस पर चार शंकराचार्यों की परम्परा की शुरुआत हुई। शंकराचार्य के बाद गुरु गोरखनाथ का नाम सबसे बड़ा है।
वर्तमान में आद्य गुरु शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, वल्लभाचार्य, रामानंद, माधव, निम्बार्क, गौड़ीय, बासवन्ना, जम्भेश्वरजी पंवार, कबीरदास, रविदास और ज्ञानेश्वर की परंपरा के गुरुओं को ही सनातन हिंदू धर्म का धर्मगुरु माना जाता है। हालांकि सभी संप्रदाय, मत, पंथ और समाज के मूलत: धर्मगुरु चार मठों के चार शंकराचार्य ही है।