माता गायत्री को वेदमाता भी कहा जाता है। उनके हाथों में चारों वेद सुरक्षित हैं और उन्हीं के नाम पर गायत्री मंत्र की रचना हुई है। वे ही गायत्री मंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनके बारे में पुराणों में अलंकारिक कथाओं का वर्णन मिलता है। लेकिन कई कथाओं को पढ़ने के बाद यह समझ में आता है कि एक गायत्री तो वो थीं जो स्थूल रूप में एक देवी हैं और दूसरी वो जो चैतन्य रूप में इस ब्रह्मांड की आद्यशक्ति हैं। आओ जानते हैं उनके बारे में सबकुछ।
1.माना जाता है कि ब्रह्माजी की 5 पत्नियां थीं- सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती। इसमें सावित्री और सरस्वती का उल्लेख अधिकतर जगहों पर मिलता है जो उनकी पत्नियां थीं लेकिन बाकी का उल्लेख स्पष्ट नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पौराणिक मान्यता अनुसार ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती का विवाह भगवान विष्णु से हुआ था, जबकि ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती अपरा विद्या की देवी थीं जिनकी माता का नाम महालक्ष्मी था और जिनके भाई का नाम विष्णु था। विष्णु ने जिस 'लक्ष्मी' नाम की देवी से विवाह किया था, वे भृगु ऋषि की पुत्री थीं।
2. मान्यता है कि पुष्कर में यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। यह गायत्री संभवत: उनकी पुत्री नहीं थी। इससे सावित्री ने रुष्ट होकर ब्रह्मा को जगत में नहीं पूजे जाने का शाप दे दिया था। कुछ जगहों पर कहा गया कि सरस्वती ने रुष्ठ होकर श्राप दे दिया था।
कुछ विद्वान मानते हैं कि जब यज्ञ का समय निकला जा रहा था तो ब्रह्माजी ने ब्राह्मणों से कहा कि हमारी पत्नी को आने में तो समय लग रहा है अब तुम्हीं कोई उपाय बताओ? तब यज्ञकर्ताओं ने एक गाय को पकड़कर बैठा दिया और वेद मंत्र का उच्चारण करने लगे। उसी दौरान गाय के मुख से गायत्री देवी प्रकट हो गई। गायत्री देवी को ब्रह्माजी के साथ बैठा दिया गया और यज्ञ प्रारंभ हो गया।
3. गुर्जर इतिहाकार के जानकार मानते हैं कि गायत्री माता एक गुर्जर महिला थीं। जाट इतिहास अनुसार यह गायत्री देवी राजस्थान के पुष्कर की रहने वाली थी जो वेदज्ञान में पारंगत होने के कारण विख्यात थी और जाट ही थीं। यह भी कहते हैं कि यह स्थानीय ग्वाल बाला थीं, जो वेदों का ज्ञान रखती थीं। यह भी कहा जाता है कि वह नरेन्द्र सेन नामक अहीर राजा की कन्या थीं। अतः इन्हें गोप कन्या या यादवी भी कहा जाता हैं। हालांकि यह शोध का विषय है। इसकी हम पुष्टि नहीं करते हैं।
4. गायत्री माता को आद्याशक्ति प्रकृति के पांच स्वरूपों में एक माना गया है। कहते हैं कि किसी समय में यह सविता की पुत्री के रूप में जन्मी थीं, इसलिए इनका नाम सावित्री भी पड़ा। कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया था जिसके चलते इनका एक नाम ब्रह्माणी भी हुआ।
5. पुराणों की एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ। कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए। ब्रह्मजी से सावित्री हुई। ब्रह्मा और सावित्री के संयोग से चारों वेद उत्पन्न हुए। वेद से समस्त प्रकार का ज्ञान उत्पन्न हुई। इसके बाद ब्रह्मा ने पंच भौतिक सृष्टि की रचना की। उन्होंने दो तरह की सृष्टि उत्पन्न की एक चैतन्य और दूसरी जड़। ब्रह्मा की दो भुजाएं हैं जिन्हें संकल्प और परमाणु शक्ति कहते हैं। संकल्प शक्ति चेतन सत् सम्भव होने से ब्रह्मा की पुत्री हैं और परमाणु शक्ति स्थूल क्रियाशील एवं तम सम्भव होने से ब्रह्मा की पत्नी हैं। इस प्रकार गायत्री और सावित्री ब्रह्मा की पुत्री और पत्नी नाम से प्रसिद्ध हुई।