हिन्दू धर्म में किसी भी जीव की हत्या करने को ब्रह्म हत्या माना गया है। अलग अलग जीवों की हत्या करने का अलग अलग दोष लगता है और उसी के आधार पर नरक का निर्धारण होता है। इससे पहले उसके वर्तमान जीवन में उसे जो सजा भुगतना होती है वह अलग होती है।
हिन्दू वेद और पुराणों के अनुसार गौ, भ्रूण, मात पिता, ब्राह्मण और ऋषि की हत्या करना सबसे बड़ा पाप माना जाता है। ऐसे व्यक्ति के द्वारा किया गया प्रायश्चित भी बेअसर होता है। क्योंकि साधक के बाद संत की हत्या करने पर पाप की मात्रा 100 प्रतिशत मानी जाती है। इसे ब्रह्म हत्या कहते हैं। ब्रह्म हत्या कई प्रकार की होती है।
पुराण कहते हैं कि गोओं और सन्यासियों को मात्र कहीं भी बंद करके रोक रखने वाला पापी रोध नामक नरक में जाता है।
संतों के 5 कार्य होते हैं- 1.ब्रह्म को जानना, 2.स्वयं को जानना, 3.गुरु की सेवा, 4.लोककल्याणार्थ कार्य करना और 5.सत्संग। उपरोक्त सभी कार्य करते हुए संत को देव तुल्य ही माना जाता है। धर्म मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति की हत्या करने वाले पापी को कई जन्मों तक इसका दोष झेलना होता है।
राजा दशरथ ने और राजा पांडु ने अनजाने में ही ब्रह्म हत्या का पाप झेला था, जिसके चलते क्या परिणाम हुआ यह सभी जानते हैं। ब्रह्महत्या का शाब्दिक अर्थ है- ब्राह्मण की हत्या। 'ब्राह्मण' का अर्थ है- ब्रह्म को जानने वाला (ब्रह्म जानाति इति ब्राह्मणः)। एक संत का कार्य ब्रह्म को जानना ही होता है।
ब्रह्म हत्या करने वाले के कुल का स्वत: ही या देवीय शक्ति के सहयोग से नाश हो जाता है। कार्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी थी जिसके चलते उससे संपूर्ण कुल का नाश हो गया था। पुराणों में ऐसे कई उदाहरण हैं या कथाएं हैं जिसमें यह बताया गया है कि किसी ऋषि या संत की हत्या करने का परिणाम क्या होता है।